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कर्मन कर्मग्रहण भी चोरी है ऐसी
शंकाका उत्तर ५९-६० नगरादिमार्ग तथा श्रावकगृह आदिक अदत्त होनेसे उसमें प्रवेश करने से मुनियोंको चौर्यदोष लगता है इस शंकाका उत्तर ६० ब्रह्मचर्यव्रतका लक्षण
६०
६१
ब्रह्मचारी धन्यवादका पात्र है स्त्री रात्रि, नदी, दृष्टिविषासर्पिणी
तथा वह्निज्वालाके समान है ६१-६२ ब्रह्मचारीको निरंतर सुखकी प्राप्ति ६२ ब्रह्मचर्यकी पांच भावनाओंका वर्णन ६३ मुनिजन कामोन्मादक आहार नहीं लेते हैं ६३ परिग्रहविरति - व्रतका वर्णन ६४ ज्ञानादिक भाव परिग्रह क्यों नहीं ?
इसका उत्तर
रागद्वेषों के अभावसेही व्रतपालन सज्जन संपत्ति आपत्तिओंमें हर्षविषाद रहित होते हैं ६६
६५ ६५
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गुरु कैसा होना चाहिये चतुर्थपरिच्छेद
६६-६७ ६७-११०
६८
शल्यके निरुक्तिपूर्वक भेद मायाशल्यका वर्णन
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मिथ्यात्वशल्यके भेदोंका प्रतिपादन ७० आत्मा नित्य मानने में दोष आत्मा क्षणिक मानने में दोष आत्मा नामक पदार्थ नहीं है ऐसा
चार्वाकका पूर्वपक्ष ७३–७४ आत्मतत्त्वकी सिद्धि करनेवाला जैनोंका सिद्धान्तपक्ष - उत्तरपक्ष शरीर पूर्वकर्मकृत है तथा अन है तथापि उसमें हर्ष विषादादि उत्पन्न करनेवाले नाना स्वभाव हैं
७१ ७१-७३
७४-७६
७७
( २ )
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आत्मा नित्य, व्यापी, अकर्ता अमूर्तिक है ऐसा सांख्योंके मतका खण्डन ७७ प्रकृति सर्वज्ञ, जगन्निर्मात्री तथा सर्व संहार कारिणी है ऐसा सांख्यका पूर्वपक्ष ७८ प्रकृतिवादका खण्डन तथा सांख्यमतमें अहिंसाव्रत के सिद्ध्यभावका कथन ७९-८१ कोई आत्मा सर्वज्ञ नहीं होता ऐसा मीमांसकों का पूर्वपक्ष
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८१-८३
कोई आत्मा सर्वज्ञ हो सकता है। ऐसा जैनोंका सिद्धान्तपक्ष प्रत्यभिज्ञान प्रमाणसे शब्द नित्य, व्यापी तथा वर्णसहित होनेसे अपौरुषेय है ऐसा मीमांसकों का पूर्वपक्ष ८५ dant अपौरुषेयताका खण्डन ८५-८७ कान ध्वनियोंसे संस्कृत होकर शब्द ग्रहण करते हैं इस विषयका खण्डन ८७ वेदी प्रवाहनित्यताका खण्डन ८७-८९ ईश्वर सृष्टिकर्ता होनेसे सर्वज्ञ हैं ऐसा नैयायिक वैशेषिकों का पूर्वपक्ष ९०-९१ ईश्वर सृष्टिकर्ता नहीं हो सकता ऐसा जैनों का सिद्धान्तपक्ष जिनेश्वर कवलाहार करते हैं ऐसा श्वेताम्बरों के कथनका खण्डन आहारग्रहणसे सुख होता है ऐसे कथनका दिगंबरोंसे खण्डन लोग आहार रागभाव से ग्रहण करते हैं केवल जिनेशमें रागभाव नहीं अतः वे भोजन नहीं करते हैं । वे पूर्ण वीतराग हैं कवलाहारके बिना केवलीकी देहस्थिति नहीं अतः वह आहार ग्रहण करते हैं इसका उत्तर
८३-८५
९१-९५
९५
९५
९६
९६-९७
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