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________________ सिद्धान्तसारसंग्रहका विषयानुक्रम पृष्ठसंख्या प्रथमपरिच्छेद १-२ मङ्गलस्तुति ग्रन्थरचना-प्रतिज्ञा २ रत्नत्रय से जीवितसाफल्य ३ समन्तभद्राचार्य के वचनोंकी दुर्लभता ३ ३ धर्म से ही सुखप्राप्ति परीक्षापूर्वक धर्मग्रहण मिथ्याकुलधर्मकी यता ४ ४ सम्यग्दर्शनका स्वरूप ५ ५-६ देव, आगम-गुरुका लक्षण सम्यग्दर्शनके पच्चीस दोषोंका १-१६ सविस्तर कथन ६-८ निसर्गजादि सम्यग्दर्शनभेदोंका स्वरूप ८-१० काललब्धियों का वर्णन सम्यग्दर्शनकी श्रेष्ठता संवेगादिक आठ गुणों का स्वरूप सम्यग्दृष्टि दोषदृष्टि नहीं हैं सम्यग्दृष्टि जीव कहां उत्पन्न नहीं होते ? द्वितीय परिच्छेद Jain Education International सामायिकादि चौदह अङ्गबाह्य श्रुतका वर्णन १० ११-१२ १२-१३ १४ १५-१६ १७-४८ सम्यग्ज्ञानका लक्षण सन्निकर्ष प्रमाणका खण्डन सम्यग्ज्ञानके भेद मतिज्ञानका सविस्तर वर्णन बुद्धिऋद्धिरूपमतिज्ञानका वर्णन बारह अंग और चौदह पूर्वोकी पदसंख्या और उनके विषयोंका वर्णन २५-३३ पदभेदों का वर्णन ३३ १७ १७- १९ १९ २०-२३ २३-२५ ३४-३६ श्रुतज्ञानके पर्याय, पर्यायसमासादिक अवधिज्ञानका विवरण देशावधिज्ञानके भेद और स्वामी अवधिज्ञानके तीन भेदोंका कथन मन:पर्ययज्ञानके भेद और उनके स्वरूपका कथन वीसभेदों का वर्णन ३६-३९ ३९-४० ४०-४२ ४२ केवलज्ञानके स्वरूपका वर्णन मत्यादिक ज्ञान और पृष्ठसंख्या कैसे कुज्ञान होते हैं ? प्रत्यक्ष और परोक्षज्ञानका वर्णन तथा सम्यग्ज्ञानकी महिमा For Private & Personal Use Only ४२-४४ ४४-४५ ४६-४७ ४७-४८ तृतीय परिच्छेद ४९-६७ ४९ महावीर - जिनस्तुति चारित्रका लक्षण और उसके भेद ४९-५० हिंसा और हिंसा के भेद ५०-५१ हिंसा से इहपरभव में दारुणदुःखकी प्राप्ति- ५१-५२ मन्त्रपूर्वक पशुहिंसा शान्ति करनेवाली है इस विषयका खंडन ५३ देव, अतिथि और गुरुके निमित्त की गयी हिंसाभी हिंसाफलकोही देती है ५४ अहिंसाका फल तथा उसकी पांच भावनाओंका वर्णन ५४-५५ असत्यवचनका लक्षण और उसके भेद ५५-५७ सत्यभाषणका शुभ फल तथा उसकी भावनाओं का वर्णन ५७-५८ अचौर्यव्रतका लक्षण, धन बाह्य प्राण है, चोरसे अधिक पापी कोई नहीं है ५८ अचौर्यव्रतकी भावनाओं का वर्णन ५९ www.jainelibrary.org
SR No.001846
Book TitleSiddhantasarasangrah
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorJindas Parshwanath Phadkule
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1972
Total Pages324
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size23 MB
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