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-६. ७५)
सिद्धान्तसारः
( १५१
चतुर्थ्यां नीललेश्यास्ते पञ्चम्यामुपरि स्थिताः । नीलाः कृष्णास्त्वधः षष्ठयां कृष्णा एव निरन्तराः ॥ सप्तम्यां कृष्णकृष्णास्ते नारका नरकावनौ । क्षेत्रस्वभावतो हीना' जायन्ते ते नपुंसकाः ॥ ६८ असुरोदीरितानेकदुःखिनस्त्रिषु ते पुनः । ततः परस्परं दुःखान्युद्गिरन्ति दुराशयाः ॥ ६९ मिथ्यादर्शनविज्ञानचारित्रैस्तीवभावगैः । जायते दुर्गतिः सत्यं सत्त्वानामिति नारकाः ॥ ७० वेदना द्विविधा तेषां बाह्याभ्यन्तरभेदतः । असातजनिताश्चित्तसम्भवा देहजाः पराः ॥ ७१ क्षेत्रस्वभावतो घोरा शीतोष्णजनिता परा । वेदना जायते तेषां नारकाणामसातजा ॥ ७२ आचतुर्था भवन्त्येते नारका हयुष्णवेदनाः । पञ्चम्यामुपरिष्टात्ते द्वे लक्षे चोष्णवेदने ॥ ७३ लक्षमेकमधस्ताच्च तस्याः शीतैकवेदनाः । षष्ठयां चैव तथा पञ्च सप्तम्यां शीतवेदनाः॥७४ असंज्ञिनश्च ये तावज्जीवाः पञ्चेन्द्रिया मृताः। यान्ति ते नरकेऽधस्तात्प्रथमे न परेष्वमी ॥७५
चतुर्थी पृथ्वीमें-पंकप्रभामें नीललेश्या है, पांचवी धूमप्रभाके उपरके भागमें नीललेश्या है और अधोभागमें कृष्णलेश्या है । छठे नरकमें कृष्णलेश्या है और सातवे भागमें कृष्णकृष्णलेश्या है । इस प्रकार नरकपृथिवीओंमें लेश्याओंका क्रम है । क्षेत्रस्वभावसे वे अतिशय दुःखी, हीन हैं और वे नपुंसक होते हैं ।। ६७-६८॥
तीसरे नरकतक असुरोंके द्वारा वे नारकी दुःखित किये जाते हैं। चौथे नरकसे सातवे नरकतक वे नारकी जीव दुर्भावनाओंसे अन्योन्यको दुःख देते हैं। नाना प्रकारके दुःखोंसे वे अन्योन्यको पीडित करते हैं ।। ६९ ॥
तीव्र परिणामोंसे युक्त ऐसा मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्रसे जीवोंको दुर्गति प्राप्त होती है, अर्थात् वे जीव नरकमें नारकी होकर जन्मते हैं ॥ ७० ॥
उन नारकियोंको नाना प्रकारकी वेदना भोगनी पडती हैं। वे वेदनायें बाह्यवेदना और अभ्यन्तर वेदना ऐसी दो प्रकारकी हैं। असातावेदनीय कर्मके उदयसे उत्पन्न हुई वेदनाएं, मानसिक वेदनायें, और देहसे उत्पन्न हुई वेदनायें, क्षेत्रस्वभावसे भयंकर शीत और उष्णसे उत्पन्न हुई वेदनायें ऐसे वेदनाके अनेक प्रकार हैं । वे असाता वेदनीयसे उत्पन्न होती हैं । ७१-७२ ॥
(नरकबिलोंके शीतोष्णत्वका वर्णन । )- पहली पृथ्वीसे आरंभ कर चौथी पृथ्वीतक जो नरकबिल हैं वे उष्णवेदनाको उत्पन्न करते हैं । अर्थात् वहां अत्यंत उष्णता है। पांचवी पृथ्वीके उपरके दो लक्ष बिल उष्णवेदनाके धारक हैं । और पांचवी नीचले भागमें एक लाख नरकबिल शीतवेदनावाले होते हैं अर्थात् उन बिलोंमें अत्यन्त शीतवेदना है। छठे नरकके एक लाख बिल और सातवी नरकके पांच बिल ये शीतवेदनाके हैं ।। ७३-७४ ॥
कौन कौनसे जीव किस किस नरकमें उत्पन्न होते हैं-जो असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव हैं,
१ आ. हीना २ आ. यान्ति चेन्नरके
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