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-४. १७५)
सिद्धान्तसारः
इत्यप्याहारमात्रेण सिद्धसाधनदोषतः । न प्रमाणं भवेत्तेषामतत्त्वाभिनिवेशिनाम् ॥ १६९ कर्मनोकर्मनामानमाहारं गृह्णतः सतः' । देहस्थितिः कथं तस्य नानिवार्या प्रजायते ॥ १७० कर्मनोकर्मनामा च लेप्याहारस्तथापरः । ओजोऽथ मानसाहारः कवलश्चेति षड्विधः॥ १७१ आहारोऽनेकाधाभाणि देहस्य स्थितिकारणम् । तत्कथं कवलाहारेणैवासौ हतचेतसाम् ॥ १७२ एतेन कवलाहारेणाप्यसौ व्यभिचरिणा । एकेन्द्रियादिदेवानां तदभावेऽपि दर्शनात् ॥ १७३ अथौदारिकदेहत्वादहतः कवलाशनात् । देहस्थितिस्ततो नो नः कदाचिद्वयभिचारिणी ॥ १७४ तदतेदपि मिथ्यात्वं तत्त्वार्थानवधारणात् । परमौदारिका यस्मादहतो देहसंस्थितिः ॥ १७५
दिगंबरोंका इसके ऊपर इस प्रकार कथन है। केवलीकी देहस्थिति आहारमात्रसे होती है ? अथवा कवलाहारसे होती है? प्रथम पक्ष यदि माना जायगा तो सिद्धसाधनता है अर्थात् आहारमात्र तो केवलीको हमभी मानते हैं परंतु आहारमात्रसे कवलाहारभी उनको है ऐसा सिद्ध नहीं होता । अतः अतत्त्वमें आग्रह करनेवाले श्वेतांबरोंका कवलाहार पक्ष प्रमाणभूत नहीं है । १६९ ॥
केवली नोकर्माहार और कर्माहार ग्रहण करते हैं इसलिये उनकी देहस्थिति अनिवार्य क्यों नहीं है ? अर्थात् केवलीकी देहस्थितिको कवलाहार कारण नहीं है । नोकर्माहार और कर्माहारसे केवलीकी देहस्थिति है ।। १७० ॥
___ कर्माहार, नोकर्माहार, लेप्याहार, ओजआहार, मानसाहार और कवलाहार ऐसे आहारके छह प्रकार हैं ॥ १७१॥
___इस प्रकार देहकी स्थितिका कारण आहार अनेक प्रकारका कहा गया है तो कवलाहारसेही देहस्थिति होती है ऐसा क्यों मानना चाहिये । जिनकी बुद्धि नष्ट हुई है, वे ऐसा मानते हैं अर्थात् कवलाहारसेही देहस्थिति है, ऐसा मानना अयोग्य है। अतः कवलाहारसे देहस्थिति मानना व्यभिचार-दोषसे युक्त है; क्योंकि एकेन्द्रियादि जीव और देवोंकी देहस्थिति कवलाहारके अभावमें भी रहती है नष्ट नहीं होती ।। १७२-१७३ ॥
श्वेतांबरोंका कहना यहां ऐसा है- अरिहन्त औदारिक देहवाले हैं इसलिये कवलाहारसे उनकी देहस्थिति होती है अतः उपर्युक्त व्यभिचार दोष नहीं है ॥ १७४ ॥
(आचार्य उसका खंडन करते हैं)- तत्त्वार्थका निश्चय न होनेसे श्वेतांबरोंका कथन मिथ्यात्वरूप है। क्योंकि हमारी देहस्थिति और केवलियोंकी देहस्थिति समान नहीं है । केवलियोंकी देहस्थिति परमौदारिक देहरूप है। इसलिये हमारी और आपकी देहस्थितिसे केवलियोंकी देहस्थितिका मिलान करना योग्य नहीं हैं। केवलिजिनेश्वरोंकी-देहस्थिति नानाविध आश्चर्यकारक अतिशयोंसे
१ आ. सती S.S. 13
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