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सिरिवालचरिउ
[ १. ३४.७तार-सुतारहिं घडिउ णियंबिउ सुक्कोदय-मोत्तिय-पडिबिंबिउ । एहउ सहसकूडु जिणमंदिरु गउ सिरिवालु तित्थु जगसुंदरु । 'वज-पाटलागइ सिहवार "वारवाल पुच्छिय सिरिवालई। जो उत्तंग सिहरु गण पुण्णउ सो सव्वंग-वारु किह दिण्णउ । ते जंपहिं पहु ण कुहु उघाडइ जिह पहु किवणहो हियय-कवाडइ । छुत्तु वीर उघाडिउ तुरंतउ दिउ जिणहँ बिंदु विहसंतउ । जयकारिउ जय-जय परमेसर जय सव्वंग-णाह जगणेसर । घत्ता-हरि-णवियउ पुणु हरि-जवियउ हरि-थुइ हरिहि पसंसिउ ।
हरि वंदिउ हरि आणंदिउ इम छह हरिहि णमंसिउ ॥३४।।
जय तासण-णासण सरवेसर जयहि अणाइ आइ परमेसर । जयहि अणाइ आइ वंभीसर जय पसत्थ रयणत्तय आवण जय सामी थक्कउ वसु आवण । तं कहि पहु जहि तुइ आवण तहिंढ्इ लइ जहिं जाइ ण आवण । जय पहु विरमउ चउगइ-रिद्धी जइ लइ थक्कउ सिव-सुह-रिद्धी । जय जय जाह लहय्य-परुप्पउ जय सुजाण जाणिय-परमप्पउ । इम वंदिवि जिणु परमाणंदे जम्मण्हवणु किउ मेरु सुरिदे । घियह दुद्ध-दहि-खंड-पवाहें सव्वोसहि पहाविउ उच्छाहें । आवजिउ सुह-कम्मु थुणेप्पिगु अठ्ठपयार पूज विरएप्पिणु । पुणु णिविट्ठ मझाण समाइय एत्तहि चर रायहरु धाइय । घत्ता-तहि अक्खिउ जं मइ रक्खिउ मण-चिंतिउ संपाइयउ ।
हंसदीव-वर-सामिय णहयल-गामिय रयणमँजूस-वरु आइयउ ॥३५।।
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कणयकेउ विज्जाहरु चलियउ पुणु आणंद-भेरि अप्फालिय णिवइ गंपि जिणु दिट्ठ अभंगउ पुणु सिरिवालु भेटिउबहु-करणहिं रयणमँजूस धीय सुह-लक्खण *बहु उछाहुँ णयरहँ पइसंतहँ । रच्छा सोह हिं सिगरि छत्तहिं
कणयमाल घरिणिएँ सहु चलियउ । णिसुणि लोय जिणवंदण चालिय । सोक्खु-मोक्खु-सामी-पहु मग्गिउ । चालु सुहड महु कण्णा परणहिं। तुझु कहिय मुणि वरहि वियक्खण । मंदल-संख-भेरि वायंतहँ । गायण-वायणेहि वच्चंतहिं ।
४. ग वज्ज कवाड लग्ग सिह वारई। ५. ग द्वारपाल पुच्छिय । ६. ग कहि । ७.ग ते जंपहिं कुइ
पहु ण उघाडइ । ३५. १, ग जय भवणासण सव्व सुरेसर । २. ग अणाई णाई वंभेसर। ३. ग वसुहा वण । ४. ग ठइ ।
५. ग प्रतिमें ये पंक्तियाँ अधिक हैं-"जय आवज्जिय चउ सठि रिद्धि। जय तांडिय
कम्माणं रिद्धि ॥" ३६. १. ग सहबंदणु । २. ग सिरिपालुवि भेट्टिवि वहुकरणहिं । ३. ग वहुउच्छह । ४. ग रत्था सोहहिं
सिग्गिरि छत्तहिं । गायण वायणेहिं णच्चतहि ॥
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