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________________ सिरीवालचरिउ [१.३०.१ ३० णित्तु खंभु मणिभूसणु अंबरु रयणहँ जडिउ छत्तु धणुडंवरु । दिण्णु हिरण्णुवण्णु धण-धण्ण सयई सत्त दासी गुण-पुण्णई। बव्वर भणइ सेट्रिइम किज्जइ अम्हहँ वक्खरु सादिवि लिज्जइ । मुत्ताहल-सिरि-खंड-पवालई कप्पूर-लवंग-कंक्कोलई। एय-माइ बहु रयणहँ भरियइँ लेविणु वत्थ परोहण चलियई। रयण-दीवि लग्ग: जल-जाण. पोमराय-मणि तहिं अपमाणहूँ। खंचिवि हंसदीवि पोहणु णिउ. सुद्ध-फलिहमणि णं विहिणा किउ । जेहि दीव अट्ठारह क्खाणियं सार टार गय कणय पहाणिय । लाटहँ पाट जिवाइ कत्थूरिय कुंकुम-हरियंदण-कप्पूरिय । कूव-विहरि अम्माउ सुरंगई धवल-हरई जिणहर उत्तंगई। रहिय परोहणाई तहो अग्गई वणिजार सह भोयण लग्गई। घत्ता-पोहण-सह थक्कइ चलिवि ण सक्कई दीउ विउलु घण गज्जइ । धम्मु वि दह-लक्खणु णाण-वियक्खणु सयलविवणि आवज्जइ ॥३०॥ ३१ विडहर रहि थक्के हंस दीवि णियरुइ सविसे सिय हंसदीवि । तहिं विज्जाहर-वइ कणयकेउ सोहलय-सिहर जहि कणय-केउ । रायंगु मुणइ णवि सो अणंगु जसु विग्गहिं णिग्गहियउ अणंगु । 'जो पाया किसि-रक्खणु किसाणु जो वइरि-सुक्खु-भूरुह किसाणु । जस वाय-विरुद्धउ जो वि राउ बहुविह णिवाल सो खहवि जाउ । . जो दीण-दयावण-कप्प-विडउ । जो पाव-कला-णिहि-पिहुण-विडउ । जो असहणं दरसय पलइ वाहु जो अतुल तुलइ सुपयंड-वाहु । जो सेयवंतु बहु-सुक्ख-धम्मु अहणिसु चिंतइ दय-सुक्ख-धम्मु । पणवासर इव मंती पहाण समरंगणि खंडियं जेहिं पहाण । घत्ता-गहिणि पिय-वल्लहँ परियण-दुल्लहँ रइ-रस रुव-सुरंगी। दि ट्ठिहि जण-जोवइ पुणु अवलोवइ णं भयभीय-कुरंगी ॥३१॥ गय-गामिण भामिणि कणयमाल सुपियारी जिह मणि-कणय-माल । महुरालावणि जिह कोइलाइँ तहि सरिसु जुवइ णहि कोइलाइ । गुरु-पिय-पय वंदइ सा सईय भत्तिय आहंडलि जिह सईय। बे सुय तहि जाया गुण-धणाइँ उवयारणं सावण-घणारे । ३०. १. क ग णित्तु खंभुणिन्भूसणु अंबरु । २. ख तत्तु । ३. ग साटिवि । ४. ग खानिवि । ५. ग पहाणिवि । ६. ग लाटह पाटह जिवाइ कत्थूरिय। ७. ख कुव विहारइं णरइ सुरंगइ। गांव विहरि अमराउल गंधइ । ८. ग वणिवराय सह । ३१. १. क जो कवडीय अपणीय राउ । २. क जो वासु किसि रक्खणु किसाणु । ग जो पयासु किसि रक्खणु पहाणु । ३. ग जो वइरि णिहणु-भूरुह किसाणु । ४. ग पणवासर इव मती पहाण । ५. क खंडी। ३२.१. ग महरक्खर णिज्जिय कोइलाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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