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सिरिवालचरिउ
[ १. २१.९ दोहा-'किम महु हियडइ उत्तरइ पइँ जेही सुकलत्त ।
पर पिन विहि विच्छोहु किउ बारह बरिस णिरुत्त ।। घत्ता-ता जंपइ पिय महुरसर महु हियडई तुहु कंतु। बारहवरिस ण आवइ तो तउ करउँ महंतु ॥२१।।
२२ कीलंत्ती चित्त-साल-मंदिरि देइ सँदेसउ मयणासुंदरि । जिण बीसरहु णाह संसारहँ धम्मुअहिंसा पर उवयारहूँ । *जिण बीसरहु सुअण-आणंदण जिणहँ तिकाल करेवी वंदण । जिण वीसरहु सुहिअहो मग्गह। दाण चयारि दितु चउ-संघहँ । जिण वीसरहु कुंदप्पह मायरि अंगदेसु णयरी चंपाउरि । जिण वीसरहि णाह जिण-आणा । अंगरक्ख सई सातउ राणा। जिण वीसरहि अह्मारे सामिय साहसु पुरिसायारु गुसामिय । जिण वीसरहि कहउँ परमक्खर हियइँ देव पणतीसउ अक्खर । जिण वीसरहि सुपिय आआउह रायणीति छत्तीसउ आउह । जिण वीसरहि कहउँ जग-दुल्लहँ . सामिय कज्जु करेल्वउ वल्ल हैं। जिण वीसरहि कहव जइ अच्छिउ भोलेराों पियारे पच्छिउ । जिण वीसरहु देव णिय-गव्व सिद्ध-चक्क णंदीसर-पवई। जिण वीसरहु सुभोय पुरंदर बारह बरिसइँ आगम सुंदर । वयणु एक्कु पिय कहउँ समासिय जिण बीसरहु णाह हउं दासिय । घत्ता-जइ णाह बिसारहो तउ णिरु मारहो जइ आगमपहपडिचलणु।
1°जइ आइ ण पारहो कहव सहारहो तउ अम्हहँ केवलु मरणु ॥२२॥
एम सुणेवि' जिग्गभिउ धाइवि गहिउण अंचल मुद्ध ता कुविऊण पयंपई मुंच पिए ण मे अव सउण । (गाहा) हो हो पवासगामिय वत्थं धरिऊण कुप्पियं कीस पठमं ची' को मुक्कमि णिय पाण किं अंचल तुझु । कर मुत्तिय जातोऽसि वलयादिह किमद्भुतं हृदयाजदि निर्यासि पौरुसं गणयाम्यहं । (दोहउ) भणइ वियक्खणु पिय णिसुणहि वल्लहि पराण । वाह भास जउ विचलइ सिद्ध-चक्क वय-आण । .
वारह वरिसइ अवहि विहाइय । ४. ग प्रति में यह दोहा घत्ताके रूपमें प्रयुक्त है। ५. ग मेहु हियडई
तुहुँकरु । २२.१.ग कीलंति । २. ग चित्तसालिय रइ मंदिरि । ३. ग प्रतिमें निषेधके अर्थ में 'जिण' की जगह 'जण'
है। ४. ग सुहाइय मग्गहं । ५. ग गुसामिय । ६. ग अलाउह । ७. ग रज्ज । ८.ग वारह वरिसहं
गमणु वि सुंदरु । ९. ग आगमपह पडिचलणु । १०. ग जइ आणई पालहु कहव सहारहु । २३.१. ग भणिवि । २. ग पयंपए । ३. ग मुच्चसु । ४. ग कुणसु मासवणं। ५. ग चिय। ६. ग वाला
दिह । ७. ग मुहि वल्लहिय ।
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