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सिरिवालचरिउ महु अवजसु थिउ भुवणयल पूरि पई घालिउ सुंदरि सयलु चूरि । हउँ मरिज्जंतु विसमउ महंतु ए कम्में किज्जउ पुणु जियतु । महु वाउं ण पुत्तिय लेइ कोइ ह उँ चिरूँ वराउ भउ सयल-लोइ । जिह वय-फलिं भउ सिरिवालु सक्कु महु पुणि वि करावहि सिद्ध-चक्कु । णिउ कहइ धण्णु सो रिसि पवित्तु महु पुणरवि सरणु समाहिगुत्तु । 'पुणु जंपइ कि करमि पुरंदर लेहि-रज्जु पालहि सधरा-धर। भणइ वीरु सिरिवालु सयाणउ मालव देस देउ परिराणउ । देसमंडल महु अस्थि ण कज्जु वि 'जो ण रक्खु सो महु यहु रज्जु वि । घत्ता-सिरिवालु गरेसरु थुवइ जिणेसरु, अच्छइ सुहु भुंजंतु महि । सो 'समरस-रूवउ भल्लउ हूवउ, महिमंडलि जसु भमिउ तहिं ।।१९।।
२० भट्टहिं विरदावलिउ पढिज्जइ गायणेहिं सरसई गाइज्जइ । जामायउ तुहुँ णिव-पयवालहो। एम भणिवि सलहहि सिरिवालहो। इय णिसुणेविणु अइ-विद्धाणउ मयणासुंदरि पुच्छइ राणउ । दुब्बलु पहु तुव चिंत ण जाणमि । माणहि हिय-इंछिय वर-कामिणि । भणई कुमरु तुहुँ देवि अयाणिय अण्णणारि महु हियइ ण माणिय। गुरुणा दिण्णउ मई मणि भाविउ परदारहो णिवित्त-वउ साहिउ । तो वि णाह किं णिय-मणि झंखहि गुज्झ वत्त कि ण अम्हहँ अक्खहि । सुणि महु को वि ण जाणइ सुंदरि एयहि गायण गावइ घरि घरि । महु मणु वट्टइ देवि सलज्जउ करमि सेव तुव ताय णिलज्जउ । पिय भणइ देव एहु जुत्तउ
महु मणि अच्छइ एहु णिरुत्तउ । घत्ता-ता पुच्छइ राणउ मणि विद्दाणउ हउँ जाएमि विएसहिं । ता जंपिउ तीए चंदमुहीए मइँ जाएवउ समाउ तउ ॥२०॥
२१ जइ एह वत्त राणउ सुणेइ
संकलु घल्लिवि विण्णिवि धरेइ । ता भणइ कुँवरु अवहियई जामि बारह बरिसइ हउं इच्छु थामि । भणइ कुँवरि किं मोहु णिवारउ । पई विणु बारह दिण ण सहारउ । वयणु ण पिय अण्णारिसु किव्वउ मइँ पुणु तुम समेउ जाएव्वउ । चंपाहिउ जंपइ विहसंतउ होइ ण सिद्धि धणिय-सिहु जंतउ पुणु जंपइ तिय वय-आसत्तिय गइय सीय किम राहव-सेत्तिय । सिरिवाले अक्खिउ उ जुत्तउ तुहँ मि वियारहि जं जिह वित्तउ । इम संबोहि वि सुंदरि बालिय बारह बरिसइँ अवहि विचारिय ।
३. ख हउं विरु वारउ भउ सयल लेइ। ४. ग विरु वारउ । ५. क धम्म । ६. ग पुणु जंपइ णिउ तुहं लेहि रज्ज । पालहि सधराधर भमई सोज्ज। ७. ग कज्जोवि। ८.ग सो विण्णवइ लेउ इउ
रज्जवि । ९. ग सोमरस रूवउ । २०.१. ग गायणेहिं । २. सरसहिं । ३. ग मवि । ४. ग चित ण जायणि । २१. १. ग वारह वरिस्सह हउ इच्छु थामि । २. ग पहवय-आसत्तिय । ३. ग सुंदरि इम संबोहि रहाइय ।
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