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सिरिवालचरिउ
[१.१७. २२आयम-उत्तउजं तं करेहि
संसउ छंडिवि सिरु मणु धरेहि । एयहँ विहि करि सिरिवाल-कति णासिउ वाहिउ अट्ठम-दिणंति । ता भत्ति अट्ठ-दिणि कियउ तेण वाढिउ विसेसु दिण-दिण-कमेण | पढमढह किय जायरणु संतु मालइँ णिव-चंपई पूजि जंतु । इक-गुणी पूज किय कुँवरि कंत णव मिहिं दिणि भइ दह-गुणि तुरंत । दह मिहिं पुणु किरिया कम्मु साहि सयगुणि कराइय पूज ताहि । एयारसि दिणि बहु-फल-फलीय सहस-गुणी पूजा अग्गलीय । बारसि दिणि आराहेवि जंतु दस-सहस-गुणी पूजइ तुरंतु । तेरसि दिणि सुंदरि सिद्ध-चक्कु लक्ख-गुण-पूजिउ णाइ चक्कु । चउदसि आराहिवि जंत पाय दहलक्ख-गुणी पूजा कराय। पुण्णिउ परिपूरणु सिद्धजंतु कोडिगुणी पूजइ कुँवरि कंतु । घत्ता-संपुण्णई दिण्णई अट्ठमई मयरद्धसम-देहु भउ।
__ जिणधम्म-पहावे सुद्धे भावे देसु-दिसंतरि लद्ध-जउ ।।१७।।
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जे कोढिय सब दुक्ख सहतई। ते सब भले भए जि तुरंतई। पाव-घोर जे पीडिय आवइ सिद्ध-चक्क-फल भए णिरावइ । जहि-जहिं सीस गंधोवउ परसिउ तहिं-तहिं देह कणयमउ दरसिउ । पंचकोडि जो अठसठि लक्खइँ णं णाणवइ सहासइ संखइँ । पंचसयई चुलसी अणु-कमियइँ एवमाइ वाहिउ उवसमियई। सीसि गंधु णर गिण्हइ आउल. सयल अवंती भइय णिराउल । दिण-दिण पूज करइ बहु-भंतिय पत्तहु दाणु देइ विहसंतिय । दोहिमि कील करंतई णिय घरि पयवालु वि तह आयउ अवसरि । दोण्णिवि देक्खि कियउ हिट्ठा मुहु ता केण वि लवियउ सवडम्मुहु । देव म करहि भंति पुण्णाहिउ यहु सो कोढिउ तुव जामायउ। घत्ता–णरवइ अणुरंजिउ परियणु रंजिउ घरि-घरि णच्चिहिं वालिय ।
वद्धाए वज्जहिं मंगल गिज्जहिं तूरभेरि अप्फालिय ॥१८॥
'संतोसिउ णरवइ मणि खोहिउ भणिउ कामरूव तुहुँ धण्णउ वार-बार जंपइ मणि हरसिउ पुणि सुंदरि उच्छंगि लएप्पिणु हउं थिउ सुपुत्ती किण्ह-वयणु
मउ जामाइय-घरि अइ मोहिउ । कण्णारयणु लधु गुण-पुण्णउ । भोजणु किज्जहि अम्हहं सरिसउ । सिरु चुंविउ बहुभाव करेप्पिणु । पइं उज्जोयउ जिह फलिह-रयणु ।
१२. ग सहसग्गुण । १३. ग आराहेइ । १४. क लक्ष । १५. ग सक्कु । १८. १. ग जे कुट्ठिय । २. ग सह । ३. ग अट्ठसठि । ४. ग सहासई । ख पंचसई लघु सीअ णु अमियई ।
५. ग सयल अवंग भंगि णीराउल । ६. ग भत्तिय । १९. १. ग ये पंक्तियां अधिक है। ता भुववइ चिंतइ पुण्याहिय णिच्छउ एह कुमरि हय-वाह्य । २. ग
उच्छगइ लेविणु।
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