________________
सिरीवालचरिउ
[ १.१३. ९एयहँ हत्थहँ दीसइ सुपत्तु एयहँ सिरि सोहइ आयवत्तु । 'एयहँ साहु आएसु मणंति
एहहँ पुणु छह चमरा ढलंति । एयहँ अग्गासण लइय संट
वज्जावंत घंट। एयहँ अग्गइँ गायई णडंति एयह पुणु छइ-राणउ भणंति । इह णिव-लक्खण दीसहि • णिजास एयहँ पुणु छइक्खाहुलीय भास''। यहु मंदगमणु रत्तक्ख एस१२ एयहाँ सिरि दीसई सुहुम-केस । एयह सामग्गिय मइ महल्ल __ एयहँ सव्वइँ कट्टार-मल्ल । इहि णिरु हरिहर बंभहँ पयासु एयहँ पुणु मठ-देवलहँ वासु । जिहि ३.बंभणु अडदह वणराउ यहु पुणु अट्ठारह वण्णराउ । एयहँ अंधारी१४ अंग-छार एयह पुणु सहइ सहाचार ।१५
१६ यहु सूलपाणि जिम भमइ भिक्ख यहु भइरउ जिम जग देइ सिक्ख । घत्ता-विलवंतउ राएं सयलु जणु, अवगण्णिवि मंडउ राइउ ।
मणिमय-खंभ समुद्धरिया, बहुभंतिहि तोरणु राइउ ।।१३।।
वज्जइ मंदलु णिज्जइ मंगलु णारियणु' जणु करइ अमंगलु। कोढिउ पेक्खिवि रोवइ सहु पुरु मयणासुंदरि भग्णइ णं सुरु । आहरणइँ देवंगई वत्थई दोणि वि सिंगारियई पसत्थई । धीरत्तणु कुँव रिहि मणि भाविउ मयरद्धउ मइँ पुण्णे पाविउ । माय-वहिणी रोवंति णिवारइ । विहिणा विहियउ को किर वारइ। बंभण वेय पढंतह संतह
अइहव-मंगल चारु करंतह । सिरिसिरिवालो मउड़ णिबद्धउ एक-छत्तु णं रज्जु णिबद्धउ । कर-कंकण उरयले हारावलि करह रज्ज जिम सधर-धरावलि । मोद्दीवी संगुलि दीणी तहो जिम विलसइ पुहवि समुद्दहो। सिद्ध-चक्क-फल-पुण्ण पहावें परिणिय कण्ण-रयणु उच्छाहें। पाय-जुलि णिवडंति पलोइय कुँवरिहि-रूव-सिरी अवलोइय । घत्ता–ता चिंतइ णरवइ णट्ठिय महु मइ, रायमग्गु मई हारियउ।
जं दिण्ण कुमारिय कोढियहो, मंतिहि वारिउ मई कियउ॥१४॥
१०
हउँ णट्ठ-बुद्धि कोहें खविउ हउँ कुलक्खु रज्जि परिढविउ हउँ मिलियउ णीच-णराहिवेण
जं कोढेहि कग्णालविउ । मई कंतहि वयणु अइक्कमिउ । पाविय इउँ पक्खि जडाउ तेण।
७. ग आयतु । ८. ग एयहं सह आयसु जिउ भणंतु । ९. गविणवंति वि अग्गई संचलंति । ( ग प्रति में ये पंक्तियाँ अधिक हैं )। १०. ग दीसहिं । ११. ग छइ खाहुलियभास । १२. ग रत्तंखिएस । १३. ग जिम । १४. ग अधारी । १५. ग सहअचार । १६. ग यह पुणु ईसरु जिम फिरइ वारु । (ग प्रतिमें
ये पंक्तियाँ अधिक हैं )। १४. १. ख ग नारियण जण करहि अमंगल । २. ख ग मुद्दीवी । ३. ख ग समुद्दलहो। १५. १. ख ग अइक्कमिउ । २. ख जेण ण = जेम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org