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सिरीवालचरिउ
[ १. ११. ३उक्कतिय पाविय जं वालिय गुम्म वाहि घर सह कुट वालिय । सूरवण्ण ते सूर सलक्खण
गलिय-साइ किय मंति वियक्खण । कच्छदाहु पवंचिय दलवइ
वरटियाल सह रक्खइ णरवई । पाडिहेर जे णा की भासिय उवरोहिय जे काल उक्खासिय । पित्त-सुक्क-णरेंसंह गच्छइ
रोम-विहीण अंगरह अच्छइ । चमरहारि मक्खियगणु लग्गइ छत्तु धरइ णासइ फुडु भग्गइ । काहल तहि जो सहणइ दावइ घंट लेई जहि बोलण आवइ। इय सामग्गी देइ पयाणउ
अप्पणु उत्रराइँ सहराणउ । __ घत्ता–पेक्खेविणु राणउं पुणु अणुराएं मंतिहि बोलण लग्गउ ।
कुढिराणउ आवइ महु परु भावइ मयणासुंदरि-जोग्गउ ॥१२॥
१२
इउपेक्खिवि राएँ आएसिउ मंति-वग्गु सवडम्मुहु पेसिउ । हकरावहु जामायउ होसइ । मयणासुंदरि हियउ हरेसइ । गयउ मंति आणिं दुह-किण्णउ जण्णवासु पुरबाहि रि दिण्णउ । वाहुडि णरवइ गेहहु आवइ मयणासुंदरि दुहिय बुलावइ । अक्खिउ सुय महु कहिउ करेहि तुहुँ दिण्णी कोढि हि परिणेहि । भणइ कुमरि परिणवहुँ सइच्छउ अवर पुरिस महु तुव सारिच्छउ । सिंघरासि जोइसिय बुलाइय वेय-मज्झ ? तहु लगुण गणाइय। साहउ ? धरहु कण्ण परिणावहु मयणासुंदरि सुहु भुंजावहु । ता अंतेउरु भणइ रुवंतउ । कण्णारयणु ण कोढि हि जुत्तउ । रयणमाल जा तिहुवणु मोहइ सा किं सुणहहि बंधी सोहइ। घत्ता-इय परियणु सयलु विसूरियउ णयर-लोउ विभइँ भरिउ ।।
सह जंपहि णरवइ-मंडलिय इहु अम्ह अचंभउ संभरिउ ॥१२।।
पणवंति मंति'जंपहिं तिसुद्धि विभिउ पडिहासहिं ते महीस जो कुट्ठ-वाहि-वाहिउ णिहीणु जहि गलिय पलिय अंगुलिय पाय मयणासुंदरि सुवियड्ढ दुहिय पडिउत्तर दिण्णउ णिव-पवीण किम कहहु एहु तुम्ह वाहि-अंगु एयह वेसरि वाहण' अखोह'
तिक्काल-कुसल जे गंतबुद्धि । आयण्णि वयणु हो णिव गरीस। उक्किट्ठउ णिक्किट्ठउ जु दीणु। तहि केम समप्पहि कण्ण राय । किण्णरि-सुरि-विज्जाह रिहि अहिय" । "तुम्हहँ सह विंभिय बुद्धि-हीण । जसु परियणु छज्जइ चाउरंगु । एयहँ पडिहासइ रायसोह ।
३. ग धर । ४. ख णरहएं गच्छहि । ५. ख अंगरह अच्छहिं । ६. ख तहिं । ७. ख घंटालहि ।
८. ख पिक्खविणु क पेखेविणु । ९. ख मणि । १२. १. क पेखिवि । ख पिक्खि । २. ख हकारवह । ग हक्कारह। ३. ग परिणिवउ। ४. ख सइच्छई।
५. ख सारिच्छई। ६. ख बुलावहु । ७. ख गणावहु । १३. १. क पणयंग । २. ख ग तुह । ३. ख ग जहिं । ४. ख छइवलु । ५. ग वाहणु। ६. ग अखोहु ।
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