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सिरिवालचरिउ
जानवर व पक्षी
जानवरोंमें गाय, भैंस, कुत्ता, गधा, सुअर, शृगाल, सिंह, खच्चर, हाथी, ऊँटका उल्लेख है। पक्षियोंमें कोयल, कौआ, गरुड़, हंस और मुर्गेका उल्लेख मिलता है। अवन्तीके वर्णनमें हंस, गाय व भैंसके नाम आते हैं--
"हंसहँ उल सोहहिं हंस-सहिय ।।
गो-महिसि-संड जहिं मिलिय मालि।" ( १।३ ) उज्जैनीके वर्णनमें कोयलका नाम आता है। ( ११५ ) रत्नमंजूषा कामान्ध धवलसेठको कुत्ता, गधा और सूअर कहती है
अब तू कुत्ता, गधा और सूअर है।" ( ११४४) रत्नमंजूषाकी सहायता हेतु व धवलसेठको शिक्षा देने के लिए जो जलदेवता आते हैं उनकी सवारियोंके वर्णनमें मर्गा, सर्प व गरुड़के नाम आते हैं। (१।४५ ) खच्चरका उल्लेख कोढ़ी श्रीपालकी सवारीके रूपमें ( ११० ) तथा श्रीपालकी सेनाके एक अंगके रूपमें (२०३५) भी वर्णन किया गया है।
श्रीपाल पान लेकर धनपालके दरबारमें आता है तब डोम व भाण्ड ऐसे दौड़ते हैं जिस प्रकार कौए, कौएसे मिलते हैं। (२१२)
वीरदमण और श्रीपालकी तुलनामें शृगाल और सिंहकी तुलना की है। (२।२०)
यशोराशिविजयकी कन्याओंके प्रश्नोंके जो उत्तर श्रीपालने दिये हैं उनमें 'मेढक'का उल्लेख भी मिलता है । (२।११)
इसके अतिरिक्त युद्धोंमें और सेनाके वर्णनमें हाथी, घोड़ों और ऊँटका अनेक बार विवरण मिलता है। राजा कनककेतुकी पत्नी कनकमाला"दृष्टिसे वह देखती और फिर देखती तो ऐसी लगती जैसे डरी हुई हिरणी हो ।” (१३१)
इसमें हिरणीका वर्णन भी मिलता है। प्रकृति चित्रण
"सिरिवाल चरिउ' में प्रकृति चित्रण केवल 'देश-वर्णन' के प्रसंगमें ही है, वह भी बहुत थोड़ा है । अवन्तीके वर्णनमें प्रकृतिका परम्परागत वर्णन है।
"जिसमें गाँव नगरोंके समान हैं।....जिसमें सरि, सर और तालाब कमलनियोंसे ढके हए हैं, हंसोंके जोडे हंसनियोंके साथ शोभा पाते हैं। जिसमें गायों और भैंसोंके झुण्ड एक कतारमें मिलकर उत्तम धान्य ( कलमशालि ) खाते हैं । जिसमें नीलकमलोंसे सुवासित पानी बहता है। जिसका गम्भीर जल धीवरोंके लिए वर्जित है।” (११३)
पानीकी स्वच्छता बतानेके लिए कविने कैसा अनूठा वर्णन किया है-ऐसा स्वच्छ पानी कि धीवरों ( मछुओं ) को भी छूना निषिद्ध है ।
उज्जयिनीके वर्णनमें भी कविने प्रकृतिका सुन्दर चित्रण किया है
"वह अनोखी नगरी उपवनोंसे शोभित है। पक्षियोंके श्रावक उसमें चहचहा रहे हैं । लतागृहोंमें किन्नर रमण करते हैं, सालवृक्षों पर कोयले कुक रही है। कमलोंसे ढकी हई जल-परिखाएँ शोभित
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