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सामाजिक चित्रण
'सिरिवालचरिउ' एक पौराणिक कथा है। उसके नायक और पात्रोंका कोई ऐतिहासिक अस्तित्व नहीं है । आलोच्य कृतिके रचनाकाल और प्रतिपाद्य विषयका, सामाजिक तथा आर्थिक वर्णनका कोई सम्बन्ध नहीं है। यह एक ऐसी पौराणिक कथा है, जिसकी कथावस्तु काफी पुरानी है। इसलिए इसमें वर्णित सामाजिक स्थितियों, व्यवहारों और कार्यकलापोंका समकालीन स्थितिसे कोई तालमेल बिठाना उचित नहीं है। फिर भी कहीं-कहीं तत्कालीन परिस्थितियोंकी झलक अवश्य मिल जाती है।
१. विवाह
भारतवर्ष में प्राचीन कालसे विवाह संस्थाका प्रचलन है। विवाह तय करनेके ढंग, अलग-अलग समयमें अलग-अलग रहे होंगे। परन्तु अधिकतर लड़के-लड़कियोंके माता-पिता ही विवाह तय करने में प्रमुख भूमिका निबाहते रहे हैं। 'सिरिवाल चरिउ' में विवाह तय करने के भिन्न-भिन्न ढंग मिलते हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं(१) लड़कीको इच्छापर निर्भर
राजा पयपाल (प्रजापाल ) अपनी दोनों पुत्रियोंसे पूछता है कि वे उनकी इच्छानुसार वर चुन लें। प्रजापालकी जेठी कन्या सुरसुन्दरी तो अपनी इच्छानुसार कौशाम्बीपुरके राजा सिंगारसिंहसे विवाह कर लेती है।' परन्तु मैनासुन्दरीका कहना है कि वह माता-पिताके द्वारा तय किये वरसे ही विवाह करेगी।
प्रजापाल सुरसुन्दरीसे पूछता है
"तुम्हें जो वर अच्छा लगता हो, वह मुझे बताओ, जिससे हे पुत्री ! उससे तुम्हारा विवाह किया जा सके।" ( ११६)
इसी प्रकार मैनासुन्दरीसे पूछता है
"जो वर तुम्हें अच्छा लगे वह माँग लो, जैसा कि तुम्हारी जेठी बहनने अपनी पसन्दका वर पा लिया है।” (१८) (२) लड़कीके पिता द्वारा तय
मैनासुन्दरीको वही वर पसन्द है, जिसे उसके पिता तय कर दें। प्रजापाल उसके लिए एक कोढ़ी वर चुनता है जिसे वह हृदयसे स्वीकार करती है ।
राजा पयपाल मैनासुन्दरीको बुलाकर कहता है"बेटी ! मेरा एक कहना करोगी? तुम कोढ़ीको दे दी गयी हो । क्या उसका वरण करोगी?" मैनासुन्दरी उत्तर देती है"मैंने स्वेच्छा से उसका वरण कर लिया है। अब मेरे लिए दूसरा तुम्हारे समान है।" (११२)
विलासवतीका विवाह भी श्रीपालसे इसी प्रकार हुआ था। पंच पाण्ड्य, मल्लिवाड़, तेलंग, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, गुजरात, मेवाड़, अन्तर्वेद आदि स्थानोंसे भी उसने ( श्रीपालने ) अनेक कन्याओंसे विवाह किये थे, परन्तु उनका स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि वे किस प्रकार तय किये थे। सम्भवतः वे पिताके द्वारा ही तय किये गये होंगे।
१. (१६) २. (१।९)
३. (१।१०) ४. (१११३) ।
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