SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाग्यवादको दार्शनिक पृष्ठभूमि धवलसेठको मृत्युदण्डका हुक्म देता है । श्रीपाल धनपालसे कहता है-"इसे मत मारो। क्योंकि इसीके कारण मुझे गुणमाला मिल सकी है।” ( २।८) श्रीपालको डोम समझकर जब राजा उसे मृत्युदण्ड देना चाहता है, उस समय श्रीपालके लिए कहा गया है "जो पूर्वजन्ममें लिखा जा चुका है, उसे कौन मेट सकता है ।" ( २।४ ) श्रीपाल मुनिराजसे पूछता है "हे परमेश्वर ! मेरी भवगति बताइए। किस पुण्यसे मैं इतने अतिशयवाला हुआ, अतुलनीय योद्धा, तीनों लोकोंमें विख्यात । किस कर्मसे मैं राजाओंमें श्रेष्ठ हुआ, किस कमसे निर्धन कोढ़ी हुआ? किस कर्मसे समुद्र में फेंक दिया गया ? किस पापसे मैं डोम कहलाया ? मैनासुन्दरी मेरी अत्यन्त भक्त क्यों है ? ___ तब मुनि महाराज श्रीपालको उसके पूर्वजन्मके कर्मों के विषयमें बतलाते हैं "तम पर्वजन्ममें राजा थे। तमने पर्वजन्ममें मनिको कोढी कहा. एकको पानीमें ढकेल दिया था, एक तपस्या कर रहे मुनिको डोम कहा था, इसलिए इस जन्ममें तुम कोढ़ी हुए, समुद्रमें फेंके गये और डोम कहलाये । तुम्हारी पत्नी को ( पूर्वजन्म में ) जब यह मालूम हुआ कि तुमने मुनिनिन्दा की है तो वह तुमसे बहुत नाराज हुई। तब तुमने और तुम्हारी पत्नीने 'सिद्ध चक्र विधि' की थी। उसीके पुण्यसे आज तुम अति यशवाले हुए।" कविने भाग्यकी सत्ताको तो स्वीकार किया है, परन्तु मनुष्यको भाग्यके हाथ नहीं सौंपा है। मनुष्य स्वयं अपने भाग्यका निर्माता है। वह जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही फल मिलेगा। इस प्रकार कवि मनुष्यजीवनके शुभ-अशुभ और उतार-चढ़ावमें सन्तुलन रखना चाहता है। उसका विश्वास है कि मनुष्य धर्मके माध्यमसे ही यह सन्तुलन स्थापित कर सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy