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________________ २० सिरिवालचरिउ उसके पहले तीन सुन्दर पुत्र थे-कण्ठ, सुकण्ठ और श्रीकण्ठ । नरपतिके उन पुत्रोंकी उपमा किससे दी जाये? उसकी एक पुत्री थी, जो स्नेहकी गुणमाला थी। मानो विधाताने स्नेह-गुणमालाका निर्माण किया हो । वह अपने रूप और उन्मुक्त सौन्दर्य से शोभित थीं। वह बहत्तर कलाओंसे सब मनुष्योंको मोहित करती थी।" ( ११४६ ) कविने कोढ़ी श्रीपालके विवाहके समयका सजीव चित्र प्रस्तुत किया है। श्रीपाल राजा है परन्तु पूर्वजन्मके कर्मोसे वह कोढ़ी है। कवि उस कोढ़ीका वर्णन भी इतने सुन्दर ढंगसे करता है कि श्रीपाल कोढ़ी होते हुए भी किसी राजासे कम नहीं। "श्रीपालको मकूट बाँध दिया गया मानो एकछत्र राज्य ही बाँध दिया गया हो। हाथमें कंगन. वक्षपर हारावलि ऐसी लगती है मानो पहाड़पर स्थित धरतीपर राज्य करता हो। उसकी अंगुलिमें अंगूठी उसी प्रकार दी गयी, जिस प्रकार समुद्रपर पृथ्वी विलसित है, इस प्रकार 'सिद्धचक्र' के पुण्य-प्रभावसे उसने उत्साहसे उस कन्या-रत्नसे विवाह कर लिया । आत्मग्लानि और पश्चात्तापका एक सुन्दर चित्रण "सिद्ध-चक्र-विधिसे श्रीपालका कोढ़ दूर हो जाता है। प्रजापाल अपनी बेटीसे कहता है-'हे पुत्री ! मेरा मुँह काला हो गया था परन्तु तुमने उसे स्फटिक मणिके समान उज्ज्वल बना दिया। मेरा अपयश समूचे धरती-तलपर फैल गया था, परन्तु तुमने उसे बिलकुल मिटा दिया। मैं बहत बड़ी विषम मतिसे मारा जाता। तुमने फिर एकाएक जीवित कर दिया। हे पुत्री ! मेरा नाम कोई भी नहीं लेता। मैं लोकमें बेचारा वीर रह गया' ।" ( १।१९ ) श्रीपाल और वीरदमनके युद्धका सजीव चित्र है । ( २।२३ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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