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________________ कथावस्तु १५ वणिक वर्गके साथ श्रीपाल रत्नमंजुषाको लेकर यात्रापर चल देता है। धवलसेठ रत्नमंजूषा पर मोहित हो जाता है। उसका मन्त्री स्थितिको समझकर धवलसेठको समझाता है-"तुम अनुचित बात मत करो, रत्नमंजूषा तुम्हारी पुत्रवधू है।" धवलसेठ पर इसका कोई असर नहीं होता है । वह मन्त्रीको लालच देता है। धवलसेठ मन्त्रीसे कहता है कि तुम इस बातकी घोषणा करो कि जलमें मछली उछल पड़ी है। श्रीपाल उसे देखनेके लिए निश्चित ऊपर चढ़ेगा। तुम रस्सी काट देना ताकि वह जलमें गिर पड़े । मन्त्री वैसा ही करता है। श्रीपाल मछलीको देखनेके लिए जैसे ही चढ़ता है, रस्सी काटकर उसे पानीमें गिरा दिया जाता है। धवलसेठ रत्नमंजूषाके साथ दुर्व्यवहार करना चाहता है। रत्नमंजूषा उसे खूब फटकारती है । धवलसेठ तो कामान्ध है। जल-देवता आकर रत्नमंजूषाकी लाज बचाते हैं और धवलसेठकी खूब खबर लेते हैं। __ श्रीपाल समुद्र में बहने लगता है। सौभाग्यसे उसे एक लकड़ीका टुकड़ा मिल जाता है। उसकी सहायतासे वह दलवट्टणके किनारे पहुँचता है। वहाँके राजा धनपालके तीन पुत्र और एक पुत्री है । राजा अपनी पुत्री गुणमालाका विवाह श्रीपालसे कर देता है। ज्योतिषीके अनुसार गुणमालाका विवाह करना उसीसे तय था जो पानी में तैरकर आवेगा। धवलसेठके षड्यन्त्रसे श्रीपाल पानीमें गिरता है और तैरकर दलवट्टणमें आकर गुणमालासे विवाह करता है । दूसरी सन्धि संयोगसे धवलसेठ भी अपने काफिलेके साथ दलवटण नगरमें पहुँचता है। राजदरबारमें वह श्रीपाल को देखकर सन्न रह जाता है। पूछताछ करनेपर उसको ज्ञात होता है कि श्रीपाल राजाका दामाद है । वह अपने विडघरमें आकर मन्त्रियोंसे इस समस्यापर विचार-विमर्श करता है। वह डोम-चाण्डाल आदिको बुलाकर एक योजना बनाता है। वह उन सबसे कहता है-'तुम राजदरबारमें जाकर नृत्य करना और वहाँ श्रीपालको अपना सम्बन्धी बताना। मैं निश्चय ही तुम्हें एक लाख रुपया दूंगा।' डोम-मण्डली पूर्व नियोजित कार्यक्रमानुसार राजाके दरबारमें नाचती है। उसी अवसरपर नृत्यके बाद कोई श्रीपालको अपना बेटा, कोई भाई, कोई नाती इत्यादि-इत्यादि बतलाकर अपना रिस्ता प्रकट करता है। राजा श्रीपालपर, कुल छिपाकर शादी करनेका अभियोग लगाता है और मृत्युदण्डकी सजा सुनाता है। गुणमालाको जब यह मालूम होता है तो वह सचाई जाननेके लिए श्रीपालसे जाकर पूछती है-'तुम्हारी कौन-सी जाति है ? तुम्हारा कुल बताओ।' श्रीपाल गुणमालासे कहता है कि विडोंके पास एक सुन्दर सुलक्षण नारी है, उसीसे तुम जाकर पूछो। गुणमाला रत्नमंजूषाको साथ लेकर अपने पिताके पास आती है । राजा रत्नमंजूषासे सारी घटनाओंका विवरण व सचाई जानकर, धवलसेठको मृत्युदण्डका आदेश देता है। परन्तु श्रीपाल उसे बचा लेता है और उससे सब धन ले लेता है। इसके बाद श्रीपालकी विवाह-यात्राएँ हैं । कुण्डलपुरके मकरकेतु नामक राजाकी कन्या चित्रलेखासे श्रीपाल विवाह करता है। विवाहकी शर्त यह रहती है कि जो नगाड़ा बजाकर और सौ कन्याओंके साथ गायेगा, वह उन सबसे विवाह करेगा। इस प्रकार श्रीपाल चित्रलेखाके साथ अन्य और सौ कन्याओंसे विवाह करता है। श्रीपाल कंचनपुरके राजा वज्रसेनकी कन्या विलासवतीके साथ विवाह करता है और उसके साथ ९०० कन्याओंसे भी विवाह करता है। इसके पश्चात् श्रीपाल कोंकण द्वीप पहुँचता है। वहाँके राजा यशोराशिविजयकी आठ कन्याएँ हैं। वे श्रीपालसे अपनी-अपनी पहेलियाँ ( समस्याएँ) पूछती हैं और श्रीपाल उन सभीका समाधान कर देता है। इस प्रकार शतके अनुसार वह उन आठ राजकुमारियों के साथ-साथ अन्य सोलह सौ कुमारियोंसे भी विवाह करता है। इसके बाद पंच पाण्ड्य सुत्रदेशमें दो हजार कन्याओंसे वह विवाह करता है। मल्लिवाडमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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