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________________ सिरिवालचरिउ समस्यापूर्ति 'सिरिवाल चरिउ' में कुछ समस्याओंका उल्लेख है। श्रीपाल इनकी पूर्ति कर कई कन्याओंसे एक साथ विवाह करता है। ये समस्याएँ कवि की अपनी नहीं हैं। उत्तरकालीन अपभ्रंश चरित-काव्योंमें यह प्रवृत्ति अधिक थी। श्रीपाल; जैसे ही कंचनपुरसे कूच करता है, एक चर-पुरुष उसे बताता है कि ठाना-कोकणके राजा विजयकी १६ सौ कन्याएँ हैं। उनमें शृंगारगौरी आदि आठ कन्याएँ प्रमुख हैं। इनकी अपनी आठ वचन-गतियाँ ( शब्द-समस्याएँ ) हैं, जो इनका हल करेगा, कन्याएँ अपनी सहेलियोंके साथ, उसीसे विवाह करेंगी। कुमार पहुँचकर उनसे कहता है"अपनी-अपनी बात कहो।" सबसे पहले सौभाग्यगौरी की समस्या है : "जिसके पास साहस है सिद्धि उसी की है।" .. श्रीपालका उत्तर है-शत्रु शरीरसे जीता जाता है, बुद्धि दैवके अधीन है। परन्तु इसमें . जरा भी भ्रान्ति नहीं कि जहाँ साहस है वहाँ सिद्धि होगी ही। शृंगारगौरी का वचन है-"देखते-देखते सब चला गया।" श्रीपालका प्रतिवचन है-"कंजूसने धन न धर्ममें खर्च किया और न स्वयं खाया, केवल संचय करता रहा। दरबारमें जुआ देखते-देखते उसका सब धन चला गया।" पद्मलोमाका वचन-"उसे काचरा मीठा लगता है।'' श्रीपालका प्रतिवचन-"कुएँ में बैठकर मेंढक समुद्रको छोटा बताता है । जिसने कभी नारियल नहीं खाया उसे काचरा ही मीठा लगता है।" रण्णादेवीका वचन-"वे पंचानन सिंह हैं।" श्रीपालका प्रतिवचन-"जो लोग शीलसे रहित हैं, उनके भाग्यकी रेखा काली है; जो चरित्रसे पवित्र है वे ही पंचानन सिह हैं। सोमकलाका वचन-“दूध किसे पिलाऊँ।" । श्रीपालका प्रतिवचन-"रावणने दसमुख और एक शरीरवाली विद्या सिद्ध की। कैकशी ( रावणकी माँ ) चिन्तामें पड़ जाती है कि दूध किस मुँहको पिलाऊँ।" सम्पदा देवोका वचन-“वह मैंने कहीं नहीं देखा।" प्रतिवचन-"मैं सातों समुद्रोंमें फिरा। जम्बूद्वीपमें मैंने प्रवेश किया जो दूसरोंको पीड़ा नहीं पहुँचाता, ऐसा आदमी मैंने नहीं देखा।" पद्माका वचन-"उसने क्या कमाया ?" प्रतिवचन-“कुन्तीने पाँच पुत्रोंको जन्म दिया, वे पाँचों ही प्रिय हैं । गान्धारीने सौ पुत्रोंको जन्म दिया, उसने क्या पाया? चन्द्ररेखा कहती है-"वह उसका क्या करे ?" प्रतिवचन-“सत्तर वर्षमें जिसकी आयु गल चुकी है फिर भी वह बालासे विवाह करता है, वह उसके पास भी बैठा हो, तो भी वह करेगा क्या ?" स्पष्ट है कि ये समस्याएँ नयी नहीं हैं, कवि केवल समस्यापूर्तिके कुतूहलका अपने काव्यमें समावेश करनेके लिए इनका उल्लेख करता है। चन्द्ररेखाके वचनसे यह अवश्य हम जान सकते हैं कि उस समय (कविके समय) सत्तरसालके बूढ़े भी छोटी उम्रकी कन्यासे विवाह करते थे, और यह भारतीय समाजके लिए नयी बात नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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