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सिरिवालचरिउ
[२.१४.११पुणु आलिंगिय मयणासुंदरि लेहु देवि पहिरहु मोत्तियसरि । मेहजाय पंगुरइ जि वासिउ घत्ती-हल-पमाणु रूइ वासउ । घत्ता-ता भणइ णरिंदु कुवलयचंदु चाउरंगु बलु सज्जियउ ।
सयल वि अंतेउरु णिज्जिय रइवरु तुझु पसाएँ अज्जियउ ॥१४॥
दोणि वि कर धरेवि गउ तेत्तहि खंधावारु अवासियउ जेत्तहि । अंतेउर-परिवार सणेहें
किउ परिणामु सयल उच्छाहें । रयण मँजूस आइ गुणमाला सुंदरि पाइँ पडिय वणमाला। चित्तलेह जग-रेह सुरेहा रंभा जीवंती गुणरेहा। मयरकेय-णिव-सुय जणमोहा पाय-पडिय सह मयणासुंदरि णिय-सवें जिण्हि जिणिय पुरंदरि । "पविसेण-कणयमालहि सुव । णवसइ सविलासमई जु धुव । 'तहि पणवाविय मयणासुंदरि पउलोमी जिम इयरह अच्छरि । पुणु आइय तहि सुहागगोरि सिंगारगोरि सई-चित्त-चोरि । पुणु रण्णा चंदा संपईय
पोमावइ ससिलेहा विणीय । जसरासिविजय-णिव-तणिय धूव तिण्हु पणामिय पुणु पयपाल-सूव । सिद्ध-चक्क वउ कियउ जु कामिणि अट्ठ-सहस-उप्परि भई सामिणि । पत्ता--जंपइ रइ-मंदिरि मयणा सुंदरि परिह उ अक्खउं णाह सहो ।
सह-महि-णिभंछी अइ-दुग्गंछी कम्मु विणिंदउ ताय महो ॥१५॥
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मयणासुंदरि मंतु पयासिउ जइ अम्हारउ कहिउ सुणिजहु कंबलु पहिरिवि गले कुरहाडी तो संधाणु अस्थि णो अस्थिय अइसउ बोलि दूउ पायउ। पडिहारे रावलि पइसारिउ दइ आसणु गउरवि वइसारिउ पुच्छिय बात सुकुसल-पयासणु दूए वात कहिय अणुराएँ यहु दीवाहिउ णरवइ जुंजइ जं लेहइं लिहियउ तं किज्जइ
मेरउ कम्मु ताय उवहासिउ । तउ तायहँ सहुँ एम भणिजहुँ । एम भेट जई करइ महारी। एह वातणउ होइ पसत्थिय । लेक्खु लेवि उज्जेणिहि आयउ । सीसु णाइ णरवइ जयकारिउ । दिण्णु तमोलु कियउ संभासणु । को इहु णरवइ पुच्छिउ राएँ ।
.. दीव-समुद्द-घाड-सह भुंजइ ।
धम्म-दुवारु मग्गिं जाइज्जइ ।
६. ग मेहजाइ । ७. ग थत्ति लइय माणु रुइ वासउ । १५. १. ग तेत्तहुं । २. ग जेत्त । ३. जिणि । ४. ग कणयप्पह पविसेणह जे सुव । ५. ग तेहि वि । ६. ग
सयचित्त । ७. ग संपईय। ८. ग उपरि । ९. ग भइ । १६. १. ग सुणिज्जइ। २. ग सिहं । ३. ग भणिज्जइ। ४. ग गलय कुडारी । ५. ग वत्त । ६. ग अइ
सउ वुल्लिवि । ७. ग वत्त । ८. क भागि ।
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