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________________ ६५ २.१४. १०] हिन्दी अनुवाद सेनाके साथ वह दलवट्टण नगरमें आया और वहाँ गुणमाला और रत्नमंजूषा में अनुरक्त होकर दामाद श्रीपाल सुखपूर्वक रहने लगा। एक दिन आधी रातको वह सोचने लगा कि यदि अब मैं उज्जैन मिलने नहीं जाता तो मेरी प्रिया मैनासुन्दरी सुख देने वाली दीक्षा ले लेगी। उसने राजा धनपालसे विनय की कि मैं जाऊँगा, हे ससुर, मुझे भेज दो। अगर मैं नहीं जाऊँगा तो मेरी बात नहीं रहेगी और मैनासुन्दरी तप ग्रहण कर लेगी। पत्ता-यह कहकर कामदेवको जीतनेवाला विमलमति कुमार मन्दगतिवाले गजवरपर बैठकर चला, उसपर मदजलसे भ्रमर गुनगुना रहे थे। सिंदूरसे लाल, और बजती हुई घंटियोंवाला। १३ चतुरंग सेना तुरन्त चल पड़ी तूर्य और भेरी बजाती हुई । राजा के चारों ओर अन्तःपुर था । अन्तःपुरके नूपुरकी रुनझुन झंकार हो रही थी। सौराष्ट्रका राणा एकदम सकपका गया। श्रीपालने अग्निबाण चलाकर उससे कर वसूल कर लिया और सौराष्ट्रकी पाँच सौ कन्याओंसे विवाह कर लिया और भी पाँच सौ महाराष्ट्र की कन्याओंसे। गुजरातकी चार सौ और मेवाड़की नौ सौ कन्याओंसे उसने विवाह किया। अन्तर्वेदके लोगोंसे उसने सेवा करवायी और वहाँकी छियानबे कन्याओंसे उसने विवाह किया। शवर, पुलिन्द, भील, खस और बब्बरने ईर्ष्या छोड़कर उसकी सेवा की। मालव देशके भीतर जो दृष्ट लोग थे, उसने स्वयं अपने पराक्रमसे उनमें संकट उत्पन्न किया। इस प्रकार बारह वर्ष पूरे होते ही वह तुरन्त उज्जैन नगरीमें आ गया। घत्ता-चारों ओर उसने अपनी सेना छोड़ दी और चारों ओर सहस्र कोटि सेना नगरमें चली गयी। सारे नगरमें हलचल मच गयी कि कौन राजा आ गया है ?।।१३।। १४ सेनापतिको छावनीमें स्थापित कर वह अकेला सात परकोटेको लाँघकर अपनी पत्नीको देखनेके लिए घर गया। मदनासुन्दरी जिनवर का ध्यान कर रही थी और सासके आगे रो-रोकर कह रही थी कि आज स्वामी की अवधि समाप्त होती है, यदि आज भी तुम्हारा बेटा नहीं । आता तो कल मैं दीक्षा ले लँगी। तब श्रीपालकी माँने दीक्षा लेनेसे एक दिन और उस कुलवधूको रोका। सुन्दरी ने कहा-"मुझे मना क्यों करती हो। पिताको शत्रुमण्डलने घेर लिया है। हे माँ ! तुमने नहीं सोचा कि उनका क्या होगा? वह (श्रीपाल) भी सादर कहाँसे होकर आयेंगे? ( क्योंकि उज्जैनको शत्रुसेनाने घेर लिया है। ) बारह बरस में भी यदि प्रिय नहीं आता, तो हे सास, मुझे केवल दीक्षा ही अच्छी लगती है।" इतनेमें श्रीपालने कहा- "हे सुन्दरी ! अपने घर का दरवाजा खोलो।" उसने द्वार खोला। श्रीपालने जाकर माँ के चरणकमल छुए तथा मदना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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