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________________ २. १२. ४८ ] हिन्दी अनुवाद (५) सोमकला का वचन किसे पिलाऊँ क्षीर? रावण को जब एक शरीर और दस मुखवाली विद्या सिद्ध हुई, तब कैकशी ( रावणकी माँ) को चिन्ता हुई कि वह किस मुंहसे दूध पिलाये ? (६) सम्पदादेवी कहती है वह मुझे कहीं भी नहीं दिखाई दिया। सातों समुद्रोंमें मैं घूमा और जम्बू द्वीपमें भी। जो दूसरेको सन्तप्त नहीं करता, नहीं सताता, ऐसा आदमी मुझे दिखाई नहीं दिया। (७) पद्मावचन उसने क्या जोड़ा? कुन्तीने उत्पन्न किये पाँच पुत्र, जो पाँचों के पाँच प्रिय थे। गन्धारीने सौ पुत्र पैदा किये, उससे उसका क्या बढ़ गया ? (८) चन्द्ररेखा कहती है उसके लिए क्या किया जाये? जिसकी सत्तर और चार (७४) की आयु हो चुकी है। फिर बालासे विवाह करता है, वह उसके पास बैठी हुई है, वह उसका क्या करे ? इस प्रकार श्रीपाल ने नाना प्रकार से समस्यापूर्ति की। ज्यों ही उसने आठवीं गाथा हल की त्यों ही नगरमें कोलाहल होने लगा। नर-नारियोंने बहुत शब्द (आश्चर्य व्यक्त ) किया। थाना कोकणमें हलचल मच गयी। इतनेमें जयसेन वहाँ आया और उसने नगाड़े बजवाये । बड़े-बड़े पट-पटह और तूर्य बाजे बजने लगे। भेरी, काहल और शंख गूंज उठे। उसने सोलह सौ कुमारियोंसे विवाह किया। वे मानो विद्याधरी या अप्सराएँ थीं। घोड़े, गज, रथ, ऊँट आदि वाहन और बहुत-से मणिरत्न दहेजमें दिये। सोनेके बहुतसे स्वच्छ हार और समूची चतुरंग सेना उसे दी। राजा कहता है कि ये पाँच कुमार हैं किन्तु भुवनश्रेष्ठ हे युवराज, यह पट्ट तुम्हारा है। हे श्रीपाल, तुम उसी प्रकार वन्दनीय हो जिस प्रकार पाँच पाण्डवोंमें विष्णु । हमलोगोंमें तुम छठे भव्य हो, जैसे पाँच द्रव्योंके भीतर जीव द्रव्य । हम पाँचोंको तारनेवाले तुम हो, उसी प्रकार जिस प्रकार हे देव, परसिद्धान्तोंमें जिनसिद्धान्त उद्धार करता है। इस प्रकार उन्होंने तरह-तरहसे कहकर उसे रखना चाहा। परन्तु कुमार वहाँ रुका नहीं। सोलह सौ वधुओंको लेकर एक क्षणमें चल पड़ा, जैसा कि अवधिज्ञानी मुनिने कहा था। पंच पाण्डवोंके सुप्रदेशमें उसने दो हजार कन्याओंसे विवाह किया। मल्लिवाडमें सात सौको ब्याहा । और एक हजार कन्याओंसे तेलंग देशमें विवाह किया। इस प्रकार अन्तःपुर और चतुरंग www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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