SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० २५ ३० ३५ ४० ६२ Jain Education International सोमकला-वचन गति"कासु पियावउँ खीरु ?" संपदादेवी भणति - सिरिवालचरिउ रावण सिद्धी विज्ज दहमुह इक्कु सरीरु । ताकेकसि चिंतावियउ कासु पियावउँ खीरु ॥ पदमा-वचनं " सो मई कहँविण दिट्ठ ।” सातउ सायर हउँ फिरिउ जंबूदीव पइट्टु | तत्ति पराइ जु ण करइ सो मइँ कहँ वि ण दिडु ||६|| هان "काई विदत्तुर तेण ।" कोंती जाए पंच सुव पंच पंच- पिएण । गंधारी सजाइयउ काइँ विढत्तर तेण ॥७॥ चन्द्रलेखा कथयति " सो तहि काइँ करेइ ।" सत्तरि जासु 'चउग्गलिय बालियों परिणेइ | अच्छ पास बइरि सो तहि काइँ करेइ ||८|| णाणा- पयारेण सिरिवालो समस्सा पूरेइ - 'अट्ठमिहिं गाहु फेडियउ जाम र-णारीयण बहु कियड रोलु जससेणविजउ आइयउ ताउ पडु-पडह तूर वज्जिय महंत परिणाविउ सोलह-सइ कुमारि हय-गय-रह-करहइँ वाहणाइँ बहु हार सुतार हिरण्णु वण्णु पहि णिव सुय पंच वि कुमार तुहुँ बंदणीउ सिरिवाल तेम अम्हहं छठउ तुहुँ परमभव्वु अम्हीँ" पंचहँ तारणु तुहुर्त म इयपि अहिउ बहु- पयारु सोलह-सइ लइ चालिउ खणेण पंचहि पंडिय - सुपएस एहिं मल्लिवाहि "सत्तसई विवाहिय एवमाइ अंतेउर-सहियउ [ २.१२.१६ णयरहिं " कोलाहलु भयउ ताम | ठाणाकोकण-हल्ला- कलोलु । देवावि तहिं णीसाण- घाउ । 'भेरी-काहल - संख हूँ रसंत । विज्जाहरि णं अच्छरिय णारि । इज्जइँ मणि-रण घणाइँ । अवरार्ड दिष्णु चउरंगु सेण्णु । जुवरायपट्टसु तिभुवणसार । पंच पंडव महि विष्णु जेम । पण दव्व माहि जिम जीव- दव्वु । परसमय देव जिण - समउ जेम । पर तो विण तहिँ थक्कउ कुमारु । जे मुणि भासिय अवहीसरेण । परिणिय सहसइँ कण्ण तेहिं । सहसु तिलंग - देसि परिणाय । चारं वलु से मिलियउ । १२. १. क चउगइ । २. क बालि । ३. ग वट्टलिय । ४. क अट्टहंमि । ५. ग णयरहं । ६. ग भेरिय काहल संखइ महंत । ७. ग विज्जाहरि अछरि अरु कुमारि । ८. ग आऊरि । ९. क पंच हरिउ वइ सीयारि जेम । १०. अम्हहं पंचहं तारणु तुहं पि । पर समउ देव जिण समय तंपि ।। ११. ग सयसत्त । १२. ग महिय । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy