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सिरिवालचरिउ
[२.११.१
११ कंचणपुरु छंडिवि चलइ जाम आइवि भेटि उ चर-पुरिसु ताम । पहु वसइ णिरंतर देस-गाम तहिं ठावा कोकणु दीउ णाम । जसु-रासिविजउ णामें णरेसु णं सग्गु मुइवि आयउ सुरेसु । चउरासी राणी रूव-खाणि
जसमाला-देवी पट्टराणि । पण णंदणु तहो पढमउ हिरण्णु णेहाउलु जोहु जियारिकण्णु । तहो दुहियइँ सोलह-सय-गुणड्ढ़ सोहग्गगउरि जेट्ठी वियड्ढ़ । पुणु बीई तहि सिंगारगोरि पउलोमी तहि तीजी किसोरि । रण्णा चउथी पंचमी सोम
संपइ छट्ठी सत्तमिय पोम । अट्ठमी देव ससिलेह तीय जसरासि विजय जसमाल धीय । अवरह सह बहु-णरवइहि सुवा संबंधी सह सिरिवाल तुवा । अट्ठहु जो भणइ वयण-गइ सो परिणइ सोलह-सय णिवइ । जेट्ठी जहि साहस-सिद्ध-चोरि गउ पेक्खंतह सव्वु सिंगारगोरि । पउलोमी तहिं कच्च-रा सुमिठ्ठ रण्णा पंचाइणु सीहु सिठ्ठ । सोमा कह कासु पियाउ खीरु संपय कइ कहँ वि ण दिट् ठुधीरु । पोमा कह कासु विधत्तु तेइ ससिलेहा सो तहि काई करेइ । घत्ता-वर-वयणु सुणेपिणु सिंहु चलेप्पिणु ठाणा कोकण आउ सही।
अक्खिउ सहुं कण्णउं तुम्ह बलिमण्णउ अप्पणी वत्त कही ॥११॥
१२ सोहग्गगवरि-समस्सा
"जहँ साहसु तहँ सिद्धि।" सत्तु सरीरहँ आयतउ दइवायत्ती बुद्धि ।
एत्थु म कायउ भंति करि जहिं साहसु तहिँ सिद्धि ॥११॥ सिंगारगोरी-वचनं--
“गउ पेखंतहं सव्वु ।” णउ वंचिउ खदउ ण विकिउ ण संचिउ दव्वु ।
रावलि जूव-पलेवणई गउ पेखंतहँ सव्वु ॥२॥ पउमलोमी दंदोलि सिरीवालु भणइ
रयणायरु थोरउ कहइ दद्रु कूव-पइट्ट ।
जेहि ण खद्धउ णारियलु तहो कच्चरा सुमिठु ॥३॥ रण्णादेवी उत्तं
"ते पंचाइण सीह।" सील-विहूणे जे वि णर तिण्ह कीलेहु मलीह । जे चारित्तह णिम्मले ते पंचाइण-सीह ॥४॥
११. १. ग आपणी वात कही।
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