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________________ २. १०. १९ ) हिन्दी अनुवाद वस्तुबन्ध-जो नगाड़ा बजाकर और भी दूसरे हावभाव और विभ्रमसे युक्त सौ कन्याओंको जीत लेगा, राजकुमारी चित्ररेखाके साथ वे सौ कन्याएँ उससे विवाह कर लेंगी। जिसके नगाड़ा बजानेसे वे उत्सवमें नाचेंगी, हे श्रीपाल सुनिए, वे उसीकी पत्नियाँ होंगी। सेठके वचन सुनकर अमलमति श्रीपाल वहाँ गया। वहाँ उसने चन्द्रमुखी सुन्दरीको देखा। उनके गले में कन्धौरा और मणिहार हिल रहे थे। उससे कुमारने कहा कि तुम नाट्य करो। मृदंग बजाता हूँ तुम नाचो। तब उसने 'च च पुट' ताल पर मृदंग बजाया। चित्रलेखा उसपर नाचने लगी। जयमंगल नगाड़े बजने लगे। कन्याएँ सरस नृत्य करने लगीं। अकेले ही सौके साथ उसने विवाह कर लिया। ससुरने श्रीपालका सम्मान किया और उसे रथवर, अश्व, गजवर, धन, ऊँट और कंचन भेटमें दिया। राजा मकरकेतुका मन खूब सन्तुष्ट हुआ और कुण्डलपुरके लोग भी प्रसन्न हुए। दामाद वहीं सुखपूर्वक रह रहा था कि एक आदमी वहाँ आया। धत्ता-चरणोंमें प्रणामपूर्वक वह बोला-मेरी विनतीपर ध्यान दिया जाये। यहाँपर अत्यन्त प्रसिद्ध, बहुतसे गुणोंसे समृद्ध कंचनपुर नामका नगर है ।।९।। १० उसमें वज्रसेन नामक राजा है। उसने वैभवमें इन्द्रको पराजित कर दिया है। उसकी कंचनमाला नामकी सुन्दर पत्नी है। जिसके रूपने इन्द्राणीको जीत लिया है। उसके चार पुत्र हैं-सुशील, गन्धर्व, जसोह और विवेकशील। उसकी एक विलासवती कन्या है, जिसने अपनी चालसे हंसकी गतिको पराजित कर दिया है। वस्तुबन्ध-विलास और विद्यासे परिपूर्ण उसकी नौ सौ राजकुमारियाँ हैं। उनसे हे देव, विवाह कीजिए और रतिसुखका आनन्द लीजिए। वे कान्ताएँ कुशल हैं। सुरतिरंग और विज्ञानमें कुशल हैं। उनमें सबसे बड़ी है विलासमती जो तुम्हारे विरहमें सन्तप्त है। चलिए और कुमारीपर प्रसाद करिए और सभी कन्याओंसे विवाह कीजिए। दूत कहता है--- "सुन्दर और मौन धारण करनेवाली चित्रलेखासे जो विवाह करेगा वही उन नौ सौ कन्याओंसे भी विवाह करेगा। ऐसा आगमयुक्तिको जाननेवाले नैमित्तिकने कहा है।" यह सुनकर कुमार चल पड़ा। नगरमें पहुँचकर उसने कन्याओंको देखा। वहाँ उसने विलासमतीसे विवाह किया और नौ सौ पवित्र सतियोंसे। राजाने श्रीपालका सम्मान किया। पुण्याधिकोंका यही सम्मान होता है। उसे सुन्दर भण्डार दिये और घोडे आदि साधन दिये। कितने ही दिनों तक उसने वहाँ राज्य किया, फिर वह वीर वहाँसे कूच कर गया। एक हजार एक अन्तःपुर उसके साथ चला। घत्ता-शत्रुदलको चूर-चूर करनेवाला वह वीर कन्याओं और कवचोंसे सजी हुई गजघटा और कुमुदोंके लिए चन्द्रमाके समान राजाओंके साथ दलवट्टण नगरके लिए चल पड़ा ।।१०।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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