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सिरिवाल वरिउ
[२.४.१४ ता पिय इम सिरिवाले भणिया विड अच्छइ णारि सुलक्खणिया। सो पुच्छहि रयण मँजूस तिया जो कहइ मोहि सो होउ पिया । __ घत्ता-तहिं गय गुणमाल अइसुमाल अच्छइ रयणमँजूस जहिं ।
____ जाइ सुकुलु सिरिवालहो कोडि-भडालहो तासु वत्त मुहि वहिणि कहि ॥४॥
ता पुच्छइ रयणमँजूस सहि सिरिवालु कवणु किर माइ कहि । गुणमाल भणइ सायरु तरेवि अम्हारे पुरे थिउ पइस रेवि । तह परएसिहि हउं दिण्ण कण्ण 'अवडोमहँ किय सहवत्त अण्ण । तिण्हि पेक्खणु णञ्चिउ भाव-जुत्तु पाणेहि भणिउ इहु अम्ह पुत्तु । ते वयणे रायहुँ कोहु जाउ सिरिवालु हणहु हु पाणु पाउ । मइँ पिउ आइवि पुच्छिउ सुतारु "तुहुँ पुच्छण पठई हउँ भत्तारु । ता भणइ मॅजूसा सयलजुत्ति हउँ फेडउँ रायहो तणिय भत्ति। गुणमाला रयणमँजूस तहिं
गय विण्णि वि अच्छइ राउ जहिं । विज्जाहरि पभणइ देव सुणि 'सिरिवालहो जायउ कुलु सुगुणि । सिरिवालु णरेसरु राय-वुत्तु हउँ विज्जाहरि महु देव कंतु । इहि-तणउ णराहिउ अंगदेसु अरिदवणु ताउ चंपा-णरेसु । हउँ कणयकेय-णरवइहि धीय जसु ठाउ णराहिव हंसदीव । महु लगि पापिहि किउ कूड सच्छि राजु कादिवि खिउ उवहि मज्झि । धवलहो पवंचु इहु सयलु राय जं जाणहि तं तुहुँ करहि ताय । घत्ता-णिसुणेविणु वयण कोपिउ पभणइ गउ तुरियउ धणवालु पहो ।
सिरिवालहो उत्तउ कियउ अजुत्तउ जामायउ खमु करहि यहो ।।५।।
ता सिरिवालु भणइ अइ तुम्हहँ 'णिम्मित्तिउ जं कहइ णरेसर णउ मुणहि देव अम्हहँ पमाणु मोकल्लि परिग्गहु सुहड थड पायहँ लग्गउ धणवालु राउ कर धरिवि चढ़ायउ करिवरिंद लेविणु गउ णिय-मंदिरहु राउ णिय चावरि बइसारिउ तुरंतु गुणमाला-मणु रंजि उ पवाणु णं अंधे लद्धे बेवि णयण णं बज्झहि लद्धउ पुत्त-जुवलु णं वाइहि सिद्धउ धाउवाउ
मंतु ण दिट् ठु ताय पुणु अम्हहँ । सो किइ असच्चु होइ परमसर । जो उवहि गणइ गोवय-समाणु । हउँ एक णराहिव कोटिभड । खमु करि कुमर म करि विसाउ । जो सेविउ अगणिय-भमरविंद । बहु तूर-भेरि-मंगल-सहाउ । किउ तिलयपट टु जय-जय भणंतु । णं दालिद्दिय लद्धउ णिहाणु । णं बहिर फुट्टे भए सवण । लउ पाविय ण दयधम्मु अमलु । गुणमालहिं तह संतोसु जाउ ।
५.१.ग अवडोम कहिय वत्त अण्ण । २. ग तहि पेरणु । ३. ग तुहं पुंछण पट्टइ हउँ भत्तारु । ४. ग सिरि
पाल हो जायउ कुलु सुगुणि । ५. ग रज्जू कट्टि वि । ६. ग घिउ । ६. १. 'ग' प्रतिमें ये पंक्तियाँ अधिक है-दोसु णत्थि जम किउ भवि अम्हहं तिहि पावहु फलु सयल-समा
यहो दोसु ण सेट्ठिण पाण-वरायहो णउ छुट्टिज्जइ अज्जिय-कम्हहों।
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