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सिरिवालचरिउ
[ १. ४५ ११वणिवर भणहिं ठेंदु णिसारहो' इहु पाविठ्ठहो दुठ्ठहो जारहो। गय उवसग्ग करेविणु बिंतर वणिवर सिक्खा देवि णिरंतर । रयणमँजूसहि गय मण्णाइवि तुव सिरिवालु मिलइ गउ आइवि । ता" एत्तहिं जल-जाण पयहि दीव दीव टापू संघट्टहिं । णिसुणहु अण्णकहा संचलिय "सायर-वीर जहिं उच्छलिय। घत्ता-रयणायरि पडियउ कम्में णडियउ रयणमँजूसा-बल्लहउ ।
सयल वि सुर हल्लिय करुणे बुल्लिय गउ सिरिवालु बि दुल्लहउ ।।४५||
ता सिरिवालु वीरु तहिं झावई' जिणवर-सिद्ध-सूरि मणि भावइ । जल-कल्लोल-लहरि आसंघइ करणदेवि जल-भवणइँ संघइ। मयर-गोह-घडियाल वलावइ कच्छ'-मच्छ-जलमाणुस णावइ । सुंसुमार जलकरिणउं थक्कहि वडवानलँ-तंतु ण तहि संकहि । गउ पयालु उच्छलिउ महावलु जिह जल-मज्झे मुक्कु तुंबी-फलु । भुव-बलेण सायरु संभरियउ पुण्णे कठु-खंडु करि धरियउ । हत्थे जलहि तरंतु समागउ सिरिवालु वि दलवट्टण लग्गउ । जो अरि-राय माणदल-वट्टणु दीउ दिछु पाटणु दलवट्टणु । तहिं धणवालु णिवइ धर-वाल उ धणय-जक्ख णावइ धणवालउ । पट्टम हिसि णामें वणमाला ललिय-भुवहि णं मालइ-माला । तिण्णि पुत्त तहि पढमु मणोहरु पुणु सुकंतु सिरिकंठु मणोहरु । कहि उवमिज्जइ ते णरवइ सुरु अहि णिसु पढहिँ गाइ पव्वय सुय । पुणु तहि दुहिय ह गुणमाला णं विहि विहिय णेह-गुण-माला । रूव-छंद-लायण्णहिं सोहाइ । कला-बहत्तरि सहु जणु मोहइ । ताह कज्जि पुच्छिउ मुणिराएं को वरु सो अक्खहु अणुराएं। लडह बियक्खण कण्ण कुमारी णं जुवाण-जण-रइय-कुमारी। "सील-विवेय-णाह अइ-भल्ली ''जा कामियण-उरत्थल-सल्ली। मुणि उत्तउ जु तरइ जलु पाणिहिं वसइ गरिंद-गेहे तहे पाणिहिं । एम पयासिउ जइवइ जाणिहिँ छलु दइ णिउ गउ चढ़ि जाणिहिं । । घत्ता-आय उ कर तरंतु सो सायरु पेक्विवि मोहिय किंकरा ।
__ सलहहिं इहु वरवीरु पुग्ण चड़िउ णिव-सुव-करा ॥४६॥
८. ग णीसारह । ९. ग देहि । १०. ग ता एतूहिं । ११. ग सायर वीर तहा उछलियउ । ४६. १. ग मायइ। २. ग किरणदेवि । ३. ग मच्छ कच्छ । ४. ख ग वडवानल तरुण
५. ग कटू-खंड । ६. ग माण । ७. ग णामइं। ८. ग णेयगणमाला । ९. ग प्रतिमें यह पंक्ति नहीं है। १० ग सील विवेय णाई अइमारी। ११. गजा कामियण-उरत्थल भल्लो । ख सा परणेवी केण सुहिल्ली। १२. ग आयउ कर तरंत सो सायरु मोहिय देक्खि किंकरा । सयलहं पीरमज्झि वीराहिउ पुण्णहिं चडिउ सुवकरा॥
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