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________________ ७६ कार्तिकेयानुप्रेक्षा अन्वयार्थः- [ सत्तमणारयहितो ] सातवें नरकसे लेकर ऊपर [ जावय पढमं णरयं ] पहिले नरक तक जीव [ असंखगुणिदा हवंति ] असंख्यात २ गुणे हैं [ णेरइया ] पहिले नरकसे लेकर [ हेडिट्ठा ] नीचे २ [ बहुदुक्खा होंति ] बहुत दुःख हैं । कप्पसुरा भावणया, वितरदेवा तहेव जोइसिया । बे होंति असंखगुणा, संखगुणा होति जोइसिया ॥१६॥ अन्वयार्थः-[कप्पसुरा भावणया वितरदेवा ] कल्पवासी देवोंसे भवनवासी देव व्यन्तरदेव [बे असंखगुणा होति ] ये दो राशि तो असंख्यातगुणौ है [जोइसिया संखगुणा होंति ] और ज्योतिषी देव व्यन्तरोंसे संख्यातगुणे हैं । अब एकेन्द्रियादिक जीवोंकी आयु कहते हैं पत्तेयाणं आऊ, वाससहस्साणि दह हवे परमं । अन्तोमुत्तमाऊ, साहारणसव्वसुहमाणं ।।१६१।। अन्वयार्थ:-[ पत्तेयाणं ] प्रत्येक वनस्पतिकी [ परमं ] उत्कृष्ट [ आऊ ] आयु [ दह ] दस [ वाससहस्साणि ] हजार वर्षकी [ हवे ] है [ साहारणसव्वसुहुमाणं ] साधारणनित्य, इतरनिगोद सूक्ष्म वादर तथा सब ही सूक्ष्म पृथ्वी, अप, तेज, वातकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट [ आऊ ] आयु [ अंतोमुहुत् ] अंतर्मुहूर्त की है । अब बादर जीवोंकी आयु कहते हैंबावीस सत्तसहसा, पुढवीतोयाण आउर्स होदि । अग्गीणं तिरिण दिणा, तिगिण सहस्साणि वाऊणं ॥१६२॥ अन्वयार्थः- [पुढवीतोयाण आउसं ] पृथ्वीकायिक और अप्कायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु क्रमसे [बावीस सत्तसहसा ] बाईस हजार वर्ष और सात हजार वर्षको [ होदि ] है [ अग्गीणं तिण्णि दिणा ] अग्निकायिक जीवोंको उत्कृष्ट आयु तीन दिनकी है [ तिण्णि सहस्साणि वाऊणं ] वायुकायिक जीवोंको उत्कृष्ट आयु तीन हजार वर्य की है। अब द्वीन्द्रिय आदिककी उत्कृष्ट आयु कहते हैंवारसवास वियक्खे एगुणवण्णा दिणाणि तेयक्खे । चउरक्खे छम्मासा, पंचक्खे तिरिण पल्लाणि ॥१६३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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