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लोकानुप्रेक्षा हो अनन्तानन्त जीवोंका शरीर, एक जीवकी आयु वह ही अनन्तानन्त जीवोंकी आयु, इस तरहसे समानता है इसीलिये साधारण नाम जानना चाहिये ।
अब सूक्ष्म और बादरका स्वरूप कहते हैं___ण य जेसिं पडिखलणं, पुढवीतोएहिं अग्गिवाएहिं ।
ते जाण सुहुमकाया, इयरा पुण थूलकाया य ॥१२७॥
अन्वयार्थः-[ जेसि ] जिन जीवोंका [ पुढवीतोएहिं अग्गिवाएहिं ] पृथ्वी, जल, अग्नि, पवन इनसे [ पडिखलणं ण य ] रुकना नहीं होता है [ ते सुहुमकाया जाण ] उनको सूक्ष्म जीव जानो [ इयरा पुण थूलकाया य ] और जो इनसे रुक जाते हैं उनको बादर जानो।।
अब प्रत्येक और त्रसको कहते हैं
पत्तेया वि य दुविहा, णिगोदसहिदा तहेव रहिया य । दुविहा होंति तसा वि य, वि-तिचउरक्खा तहेव पंचक्खा ॥१२८॥
अन्वयार्थः-[ पत्तेया वि य दुविहा ] प्रत्येक वनस्पति भी दो प्रकार की है [णिगोदसहिदा तहेव रहिया य ] १ निगोदसहित और २ निगोदरहित [ तसा वि य
* मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंदबीज बोजरुहा ।
सम्मुच्छिमा य भणिया, पत्तेयाणंतकाया य ॥१॥ अन्वयार्थः-[मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंदधीज बोजरुहा ] जो वनस्पतियाँ मूल, अग्र, पर्व, कंद, स्कन्ध तथा बीजसे पैदा होती हैं [ सम्मुच्छिमा य ] तथा जो सम्मूर्छन हैं [ पत्तेयाणंतकाया स] बे वनस्पतियाँ सप्रतिष्ठित हैं तथा अप्रतिष्ठित भी हैं।
भावार्थः-बहुत सी वनस्पतियाँ मूलसे पैदा होती हैं जैसे अदरक, हल्दी आदि । कोई वनस्पति अग्र भागसे उत्पन्न होती है जैसे गुलाब । किसी वनस्पतिकी उत्पत्ति पर्व ( पंगोली ) से होती है जैसे ईख, बेंत आदि । कोई वनस्पति कन्दसे पैदा होती है जैसे सूरण आदि । कोई वनस्पति स्कन्धसे पेदा होती है जैसे ढाक । बहुत सी वनस्पतियाँ बीजोंसे पैदा होती हैं जैसे चना, गेहूँ आदि । कई वनस्पतियाँ पृथ्वी, जल आदिके सम्बन्धसे पैदा हो जाती हैं वे सम्मूर्छन हैं जैसे घास आदि । ये सभी वनस्पतियां सप्रतिष्ठित तथा अप्रतिष्ठित दोनों प्रकारकी हैं ॥१॥
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