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________________ ६२ कार्तिकेयानुप्रेक्षा अब साधारण प्रत्येकके सूक्ष्मता कहते हैंसाहारणा वि दुविहा, अणाइकाला य साइकाला य । ते वि य बादरसुहमा, सेसा पुण बायरा सव्वे ॥१२५॥ अन्वयार्थः-[ साहारणा वि दुविहा ] साधारण जीव दो प्रकार के हैं [ अणाइकाला य साइकाला य ] १ अनादिकाला (नित्यनिगोद) २ सादिकाला (इतर निगोद) [ ते वि य बादरसुहमा ] वे दोनों ही बादर भी हैं और सूक्ष्म भी हैं [ पुण सेसा सव्वे बायरा ] और शेष सब ( प्रत्येक वनस्पति वा त्रस ) बादर ही हैं । भावार्थः-पहिले कहे जो सूक्ष्मजीव छह प्रकारके हैं उनमें से पृथ्वी, जल, तेज, वायु तो पहिली गाथामें कह चुके हैं इन ही चारोंमें नित्यनिगोद और इतरनिगोद इन दोनोंको मिलानेसे छह प्रकारके सूक्ष्मजीव होते हैं और बाकी सब बादर होते हैं । अब साधारणका स्वरूप कहते हैं साहारणाणि जेसिं, आहारुस्सासकायाऊणि । ते साहारणजीवा, णंताणंतप्पमाणाणं ॥१२६॥ अन्वयार्थ:-[जेसिं ] जिन [ णताणंतप्पमाणाणं ] अनन्तानन्त प्रमाण जीवों के [ आहारुस्सासकायआऊणि ] आहार, उच्छ्वास, काय, आयु [ साहारणाणि ] साधारण ( समान ) हैं [ ते साहारणजीवा ] वे साधारण जोव हैं। उक्त च गोम्मटसारे: "जत्थेक्कु मरइ जीवो, तत्थ दु मरणं हवे अणंताणं । चंकमइ जत्थ एक्को, चंकमणं तत्थ णताणं ।।" अन्वयार्थः-[ जत्थ एक्को चंकमइ ] जहां एक साधारण निगोदिया जीव उत्पन्न होता है [ तत्थ ताण चंकमणं] वहां उसके साथ ही अनन्तानन्त जीव उत्पन्न होते हैं [ जत्थेक्कु जीवो मरइ ] और जहां एक निगोदिया जीव मरता है [तत्थ दु मरणं हवे अणंताणं] वहां उसके साथ ही अनन्तानन्त समान आयुवाले मरते हैं । भावार्थ:-~एक जीव आहार करे वह हो अनन्तानन्त जीवोंका आहार, एक जीव स्वासोस्वास ले वह ही अनन्तानन्त जीवोंका स्वासोस्वास, एक जीवका शरीर वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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