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________________ ५३ लोकानुप्रेक्षा अब त्रैराशिक बतलाते हैं इसमें एक प्रमाणराशि, एक फलराशि और एक इच्छाराशि ऐसे तीन राशियां होती हैं। जैसे दो रुपयोंकी कोई वस्तु सोलह सेर आती है तो आठ रुपयोंकी कितनी आवेगी? यहां प्रमाण राशि दो, फलराशि सोलह और इच्छाराशि आठ हुई । फलराशिको इच्छाराशिसे गुणा करने पर एकसौ अट्ठाईस होते हैं, उनमें प्रमाणराशि दोका भाग देने पर चौसठ सेर आते हैं, इस तरह जानना चाहिये। क्षेत्रफल:-जहां बराबरके खण्ड किये जाते हैं, उसको क्षेत्रफल कहते हैं । जब खेत डोरीसे मापा जाता है तब कचवांसी, विसवांसी और बीघा किये जाते हैं उसकी क्षेत्रफल संज्ञा है। जैसे अस्सो हाथकी डोरी होती है उसके बीस गढ़ कहलाते हैं । चार हाथका एक गट्ठा होता है । ऐसे खेतमें जो एक डोरी लम्बा चौड़ा खेत होवे उसके चार हाथके लम्बे चौड़े खण्ड करो, तब बीसको बीससे गुणा करने पर चारसौ हुए ये ही कचवांसी कहलाती हैं, इसके बीस बिसवे होते हैं उनका एक बीघा होता है । ऐसे ही जहां चौखूटा, तिखूटा, गोल आदि खेत होवे तो उसके बराबरके खण्ड करके माप कर क्षेत्रफल ले आते हैं। वैसे ही लोकके क्षेत्रकी योजनादिककी संख्यासे जैसा क्षेत्र होवे वैसे ही विधानसे क्षेत्रफल लानेका विधान गणित शास्त्रसे जान लेना चाहिये। यहां लोकके क्षेत्रमें तथा द्रव्योंकी गणनामें अलौकिक गणित इक्कीस हैं तथा उपमा गणित आठ हैं। उसमें संख्यातके तीन भेद-जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट । असंख्यातके नौ भेद--परीतासंख्यात जघन्य, मध्य, उत्कृष्ट । युक्तासंख्यात जघन्य, मध्य, उत्कृष्ट । असंख्याता संख्यात जघन्य, मध्य, उत्कृष्ट इस तरह नो भेद हुए । अनन्तके नौ भेद--परीतानन्त, युक्तानन्त, अनन्तानन्त, वे जघन्य, मध्य, उत्कृष्टके भेदसे नो हुए । इस तरह संख्यातके तीन, असंख्यातके नौ और अनन्तके नौ सब मिलाकर इक्कीस भेद हुए। जघन्य परीत असंख्यात लानेके लिये लाख लाख योजनके जम्बूद्वीपप्रमाण व्यासवाले हजार हजार योजन ऊंडे ( गहरे ) चार कुण्ड करो। एकका नाम अनवस्था, दूसरा शलाका, तीसरा प्रतिशलाका, चोथा महाशलाका। उनमें से अनवस्था कुण्डको सरसोंसे सिंघाऊ भरो, उसमें छियालीस अंकप्रमाण सरसों आवेगी। उनका संकल्प मात्र लेकर चलो। एक द्वीपमें एक समुद्र में इस क्रमसे गिराते जाओ। जहां वे सरसों समाप्त हो जाय उस द्वीप वा समुद्रकी सूची प्रमाण अनवस्था कुण्ड करो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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