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________________ एकत्वानुप्रेक्षा है [ इको बाल जुवाणो ] वह ही एक बालक होता है, वह ही एक जवान होता है [ इको जरागहिओ वुढ्ढो ] वह ही एक जरासे-बुढ़ापेसे गृहीत वृद्ध होता है । भावार्थ:-* एक ही जीव इस नाना पर्यायोंको धारण करता है। इको रोई सोई, इको तप्पेइ माणसे दुक्खे । इक्को मरदि वरात्रो, णरयदुहं सहदि इक्को वि ॥७॥ अन्वयार्थः- [इको रोई सोई ] एक ही जीव रोगी होता है, वह ही एक जीव शोक सहित होता है [ इको ] वह ही एक जीव [ माणसे दुक्खे ] मानसिक दुःखसे [ तप्पेइ ] तप्तायमान होता है [ इक्को मरदि ] वह ही एक जीव मरता है [ इको वि ] वह ही एक जीव [ वराओ णरयदुहं सहदि ] दीन होकर नरकके दुःख सहता है। भावार्थः-+जीव अकेला ही अनेक अनेक ( खोटी ) अवस्थाओंको धारण करता है। इक्को संचदि पुण्णं, इक्को भुञ्ज दि विविहसुरसोक्खं । इक्को खवेदि कम्म, इक्को वि य पावए मोक्खं ॥७६॥ अन्वयार्थः- [इको ] एक ही जीव [ पुण्णं ] पुण्यको [ संचदि ] संचित करता है [ इको] वह ही एक जीव [विविहसुरसोक्खं ] नाना प्रकारके देवगतिके सुख [ भुजेदि ] भोगता है [ इक्को ] वह ही एक जीव [ कम्मं ] कर्मको [खवेदि ] नष्ट करता है [इक्को वि य] वह ही एक जीव [ मोक्खं ] मोक्षको [ पावए ] पाता है। भावार्थः-वह ही जीव पुण्य करके स्वर्ग जाता है, वह ही जीव कर्मोका नाश करके मोक्ष जाता है । __ सुयणो पिच्छंतो वि हु, ण दुक्खलेसंपि सक्कदे गहिदु। एवं जाणंतो वि हु, तो वि ममत्तं ण छंडेइ ॥७७॥ * [निज एकत्व निश्चयस्वपदको भूलकर ही ] । + [ निर्मल विज्ञानघनस्वरूपको भूलकर ] । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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