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________________ संसार-अनुप्रेक्षा २६ ५--मैं वसंततिलकाकी सौत और तू मेरी सौतका पुत्र इसलिये मेरा भी तू पुत्र है । ६-तू मेरा पति है इसलिये तेरी माता वेश्या मेरी सास हुई । तुम सासके पति हो इसलिये मेरे ससुर भी हुए। * इस तरह एक ही भवमें एक ही प्राणीके अठारह नाते हुए। उसका उदाहरण कहा गया है। यह संसारकी विचित्र विडम्बना है । इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है। अब पांच प्रकारके संसारके नाम कहते हैं संसारो पंचविहो, दव्वे खत्ते तहेव काले य । भवभमणो य चउत्थो, पंचमश्रो भावसंसारो ॥६६॥ अन्वयार्थः-[ संसारो पंचविहो ] संसार ( परिभ्रमण ) पांच प्रकारका है [ दवे ] १ द्रव्य ( पुद्गल द्रव्यमें ग्रहणत्यजनरूप परिभ्रमण ) [खचे ] २ क्षेत्र ( आकाशके प्रदेशोंमें स्पर्श करने रूप परिभ्रमण) [ य तहेव काले ] ३ काल (कालके समयों में उत्पन्न होने नष्ट होने रूप परिभ्रमण ) [ भवभमणो य चउत्थो ] ४ भव ( नारकादि भवका ग्रहण त्यजनरूप परिभ्रमण ) [पंचमओ भावसंसारो] ५ भाव ( अपने कषाययोगोंके स्थानकरूप जे भेद उनका पलटनेरूप परिभ्रमण ) इस तरह पांच प्रकारका संसार जानना चाहिये ।। अब इनका स्वप्न कहते हैं, पहिले द्रव्यपरिवर्तनको बतलाते हैंबंधदि मुचदि जीवो, पडिसमयं कम्मपुग्गला विविहा । णोकम्मपुग्गला वि य, मिच्छत्तकषायसंजुत्तो ॥६७॥ ____* यह अठारह नातेकी कथा ग्रन्थान्तरसे लिखी गई है यथा बालय हि सुणि सुवयणं, तुज्झ सरिसा हि अट्ठ दहणत्ता । पुत्तु भतिज्जउ भायउ, देवरु पत्तिय हु पौतज्ज ॥१॥ तुहु पियरो मुहुपियरो, पियामहो तहय हवइ भत्तारो। ___ भायउ तहावि पुत्तो, ससुरो हवइ बालयो मज्झ ।।२।। तुहु जणणी हुइ भज्जा, पियामही तह य मायरी सबई। हवइ बहू तह सासू, ए कहिया अट्ठदहणत्ता ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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