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________________ २६ कार्तिकेयानुप्रेक्षा अन्वयार्थः-[ मोहस्स माहप्पं पेक्खह ] ( हे प्राणियों ! तुम ) मोहके माहात्म्यको देखो कि [ दुक्कियकम्मवसादो ] पापकर्मके वशसे [ राया वि य असुइकीडओ होदि ] राजा भी (मरकर) विष्ठाका कीड़ा हो जाता है [ य तत्थेव रई कुणइ ] और वहीं पर रति ( प्रेम ) मानता है, क्रीड़ा करता है। अब कहते हैं कि इस प्राणीके एक ही भवमें अनेक सम्बन्ध हो जाते हैंपुत्तो वि भाो जाओ, सो वि य भाो वि देवरो होदि । माया होइ सवत्ती, जणणो वि य होइ भत्तारो ॥६४॥ एयम्मि भवे एदे, सम्बन्धा होंति एय जीवस्स । अण्णभवे किं भण्णइ, जीवाणं धम्मरहिदाणं ॥६५॥ अन्वयार्थः-[ एयजीवस्स ] एक जीवके [ एयम्मि भवे ] एक भवमें [ एदे सम्बन्धा होति ] इतने सम्बन्धी होते हैं तो [धम्मरहिदाणं जीवाणं ] धर्मरहित जीवोंके [ अण्णभवे किं भण्णइ ] अन्यभव में क्या कहना ? ( वे सम्बन्धी कौन कौन ? सो कहते हैं ) [ पुत्तो वि भाओ जाओ ] पुत्र तो भाई हुआ [ य सो वि भाओ देवरो होदि ] और जो भाई था वह ही देवर हुआ । [माया होइ सवत्ती ] माता थी वह सौत हुई [य जणणो वि भत्तारो होइ ] और पिता था सो पति हुआ। ___ ये सब सम्बन्ध वसन्ततिलका वेश्या, धनदेव, कमला और वरुणके हुए । इनकी कथा दूसरे ग्रन्थसे लिखी जाती है: एक भवमें अठारह नातेकी कथा मालवदेशकी उज्जयिनो नगरोमें राजा विश्वसेन राज्य करता था। वहां सुदत्त नामका सेठ रहता था। वह सोलह करोड़ द्रव्यका स्वामी था । वह सेठ वसन्ततिलका नामको वेश्यामें आसक्त हो गया और उसने उसको अपने घर में रख ली। जब वह गर्भवती हुई तब उसका शरीर रोगसहित हो गया इसलिये सेठने उस वेश्याको अपने घरमें से निकाल दिया। वसन्ततिलका ने अपने घर में ही पुत्र पुत्रीके युगलको जन्म दिया । उसने खेद खिन्न होकर उन दोनों बालकोंको अलग अलग रत्न कम्बल में लपेट कर पुत्रीको तो दक्षिण दरवाजे पर छोड़ दी। वहांसे उस कन्याको प्रयाग निवासी बिणजारेने लेकर अपनी स्त्रीको सौंप दी और उसका नाम कमला रखा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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