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________________ धर्मानुप्रेक्षा १७६ भावार्थ:- यहाँ रत्नत्रय सहित चारित्र तेरह प्रकारका है सो मुनिका धर्म महाव्रत आदि है उसका वर्णन करना चाहिये परन्तु यहाँ दस प्रकारके धर्मका विशेष वर्णन है उसी में महाव्रत आदिका वर्णन गर्भित जानना चाहिये । अब दस प्रकारके धर्मका वर्णन करते हैं सो चैत्र दहप्पयारो, खमादि भावेहिं सुक्खसारेहिं । ते पुग्ण भणिज्जमाणा मुणियव्वा परमभत्तीए ॥ ३६३ ॥ अन्वयार्थः – [ सो चेव खमादि भावेहिं दहप्पयारो सुक्खसारेहिं ] वह मुनिधर्म क्षमादि भावोंसे दस प्रकारका है, कैसा है ? सौख्यसार कहिये सुख इससे होता है या सुख इसमें है अथवा सुखसे सार है - प्रसिद्ध है - ऐसा है [ ते पुण भणिजमाणा परममत्तीए मुणियव्वा वह दस प्रकारका धर्म ( जिसका वर्णन अब करेंगे ) भक्ति से ( उत्तम धर्मानुरागसे ) जानने योग्य है । भावार्थ:- उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य ऐसे दस प्रकारका मुनि धर्म है सो इसका भिन्न भिन्न व्याख्यान आगे करते हैं सो जानना चाहिये । अब पहिले उत्तमक्षमाधर्मको कहते हैं कोण जो ण तप्पदि, सुरणरतिरिएहिं कीरमाणे वि । उवसग्गे विरउद्दे, तस्स खिमा गिम्मला होदि ॥ ३६४ ॥ अन्वयार्थः - [ जो ] जो मुनि [ सुरणरतिरिएहिं ] देव मनुष्य तिर्यंच आदिसे [ रउद्दे उवसग्गे कीरमाणे वि ] रौद्र ( भयानक घोर ) उपसर्ग करने पर भी [ कोहेण ण तपदि ] क्रोधसे तप्तायमान नहीं होता है [ तस्स णिम्मला खिमा होदि ] उस मुनिके निर्मल क्षमा होती है । भावार्थ:- जैसे श्रीदत्त मुनि व्यन्तरदेवकृत उपसर्गको जीत केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गये, चिलातोपुत्र मुनि व्यन्तरकृत उपसर्गको जीतकर सर्वार्थसिद्धि गये, स्वामिकार्तिकेय मुनि कोंचराजाकृत उपसर्गको जीतकर देवलोक गये, गुरुदत्त मुनि कपिल ब्राह्मणकृत उपसर्ग जीतकर मोक्ष गये, श्रीधन्यमुनि चक्रराजकृत उपसर्गको जीत केवलज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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