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________________ धर्मानुप्रेक्षा : अन्वयार्थः - [ रयणाण महारयणं ] सम्यक्त्व रत्नोंमें तो महारत्न है [ सव्वजोयाण उत्तमं जोयं ] सब योगों में ( वस्तुकी सिद्धि करनेके उपाय, मंत्र, ध्यान आदिमें ) उत्तम योग है क्योंकि सम्यक्त्व से मोक्षकी सिद्धि होती है [ रिद्धीण महारिद्धि] अणिमादिक ऋद्धियों में सबसे बड़ी ऋद्धि है [ सव्वसिद्धियरं सम्म ] अधिक क्या कहें, सब सिद्धियों को करनेवाला यह सम्यक्त्व ही है । सम्मत्तगुणप्पाणी, देविंदररिंदबंदिश्रो होदि । चत्तवयोविय पावइ, सग्गसुहं उत्तमं विविहं ॥ ३२६ ॥ अन्वयार्थ :- [ सम्मतगुणप्पहाणो ] सम्यक्त्व गुण सहित जो पुरुष प्रधान है वह [ देविंदणरिंदवंदिओ होदि ] देवोंके इन्द्र तथा मनुष्यों के इन्द्र चक्रवर्ती आदिसे वन्दनीय होता है [ चचत्रयो वि य उत्तमं विविहं सग्गसुहं पावइ ] व्रत रहित होने पर भी उत्तम अनेक प्रकारके स्वर्गके सुख पाता है । भावार्थ:- जिसमें सम्यक्त्व गुण होता है वह प्रधान पुरुष है, वह देवेन्द्रादिकसे पूज्य होता है, सम्यक्त्व में देवहीको आयु बँधती है इसलिये व्रतरहित के भी स्वर्गहीका जाना मुख्य रूप से कहा है । सम्यक्त्वगुणप्रधानका ऐसा भी अर्थ होता है कि जो सम्यक्त्व पच्चीस मल दोषोंसे रहित हो अपने निःशंकितआदि गुणों सहित हो तथा संवेगादि गुण सहित हो ऐसे सम्यक्त्वके गुणोंसे प्रधान पुरुष होता है वह देवेन्द्रादिसे पूज्य होता है और स्वर्गको प्राप्त करता है । १४७ सम्माइट्ठी जीवो, दुग्गदिहेदु ण बंधदे कम्मं । जं बभवे बद्धं, दुक्कम्मं तं पि खादि ॥ ३२७॥ Jain Education International अन्वयार्थः – [ सम्माइट्ठी जीवो ] सम्यग्दृष्टि जीव [ दुग्गदिहेतुं कम्मं ण बंधदे ] दुर्गतिके कारण अशुभकर्मको नहीं बांधता है [ जं बहुभवेसु बद्धं दुकम्म तं पिणासेदि ] और जो अनेक पूर्वभवों में बाँधे हुए पापकर्म हैं उनका भी नाश करता है । भावार्थ:- सम्यग्दृष्टि मरकर द्वितीयादिक नरकों में नहीं जाता है, ज्योतिषी व्यन्तर भवनवासी देव नहीं होता है, स्त्रियों में उत्पन्न नहीं होता है, पांच स्थावर, विकलत्रय, असैनो निगोद, म्लेच्छ, कुभोगभूमि इन सबमें उत्पन्न नहीं होता है, क्योंकि इसके अनन्तानुबन्धीके उदय के अभावसे दुर्गति के कारण कषायोंके स्थानकरूप परिणाम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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