SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०५ लोकानुप्रेक्षा अब यदि अन्यस्वरूप होकर कार्य करे तो उसमें दोष दिखाते हैंससरूवत्थो जीवो, अण्णसरूवम्मि गच्छदे जदि हि। अण्णोण्णमेलणादो, एक्क-सरूवं हवे सव्वं ॥२३३॥ अन्वयार्थः-[ जदि हि ] यदि [ जीवो ] जीव [ ससरूवत्थो ] अपने स्वरूप में रहता हुआ [ अण्णसरूवम्मि गच्छदे ] पर स्वरूप में जाय तो [अण्णोण्णमेलणादो] परस्पर मिलनेसे-एकत्व हो जाने से [ सव्वं ] सब द्रव्य [ एकसरूवं हवे ] एक स्वरूप हो जांय । तब तो बड़ा दोष आवे परन्तु एकस्वरूप कभी भी नही होता है यह प्रगट है। अब सर्वथा एकस्वरूप मानने में दोष दिखाते हैं अहवा बंभलरूवं, एक्कं सव्वं पि मण्णदे जदि हि । चंडालबंभणाणं, तो ण विसेसो हवे को वि ॥२३४॥ अन्वयार्थः-[ जदि हि अहवा बभसरूवं एक्कं सव्वं पि मण्णदे ] यदि सर्वथा एक ही वस्तु मानकर ब्रह्मका स्वरूप रूप सर्व माना जाय तो [ चंडालबंभणाणं तो ण विसेसो हवे कोई ] ब्राह्मण और चांडाल में कुछ भी विशेषता ( भेद ) न ठहरे । भावार्थः-एक ब्रह्मस्वरूप सब जगतको माना जाय तो अनेकरूप न ठहरे । यदि अविद्यासे अनेकरूप दिखाई देता हुआ माना जाय तो अविद्या उत्पन्न किससे हुई । यदि ब्रह्मसे हुई तो उससे भिन्न हुई या अभिन्न हुई, अथवा सत्रूप है या असत्रूप है, एक रूप है या अनेकरूप है इस तरह विचार करने पर कहीं भी अन्त नहीं आता है इसलिये वस्तुका स्वरूप अनेकान्त ही सिद्ध होता है और वह ही सत्यार्थ है ।। अब अणुमात्र तत्त्वको मानने में दोष दिखाते हैं अणुपरिमाणं तच्चं, अंसविहीणं च मण्णदे जदि हि । तो संबंधाभावो, तत्तो वि ण कज्जसंसिद्धि ॥२३५॥ - [अर्थात् परका कुछ कर सकता है ऐसा माना जाये तो ] । + [ प्रत्येक वस्तुका स्वरूप अपने ही द्रव्य-क्षेत्र काल और भावस्वरूपसे है-परस्वरूपसे कभी भी नहीं है ऐसा सम्यक् अनेकान्त ही प्रत्येक वस्तुको बनाये रखता है ] । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy