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कार्तिकेयानुप्रेक्षा भी है [ संसारं कुणइ ] सो अपने संसारको करता है [ कालाइलद्धिजत्तो ] और *काल आदि लब्धिसे युक्त होता हुवा [ मोक्खं च ] अपने मोक्षको भी आप ही करता है।
भावार्थ:-कोई जानते हैं कि इस जीवके सुखदुःख आदि कार्योंको ईश्वर आदि कोई अन्य करता है परन्तु ऐसा नहीं है, आप ही कर्ता है । सब कार्यों को स्वयं ही करता है, संसारको भी आप ही करता है, कालादि लब्धिसे युक्त होता हुवा मोक्षको भी आप ही करता है । सब कार्यों के प्रति द्रव्य क्षेत्र काल भावरूप सामग्री निमित्त है ही।
जीवो वि हवइ भुत्ता, कम्मफलं सो वि भुजदे जम्हा ।
कम्मविवायं विविहं, सो वि य भुजेदि संसारे ॥१८॥
जहाँ २ काललब्धि शब्द आवे वहाँ मोक्षमार्गप्रकाश अ० ६ पत्र ४६२ के अनुसार ऐसा अर्थ लगाना चाहिये
प्रश्र-मोक्षका उपाय काललब्धि आने पर भवितव्यतानुसार बनता है या मोहादिकका उपशमादि होने पर बनता है अथवा अपने पुरुषार्थसे उद्यम करने पर बनता है ? यदि पहिले दो कारण मिलने पर बनता है तो हमको उपदेश क्यों दिया जाता है ? यदि पुरुषार्थसे बनता है तो उपदेश सब ही सुनते हैं तो उनमें कोई तो उपाय कर सकता है, कोई नहीं कर सकता है सो क्या कारण है ? इसका समाधान
एक कार्य होने में अनेक कारण मिलते हैं इसलिये जहाँ मोक्षका उपाय बनता है वहाँ तो पूर्वोक्त तोनों ही कारण मिलते हैं और नहीं बनता है वहाँ तीनोंही कारण नहीं मिलते हैं। पूर्वोक्त तीनों कारणोंमें काललब्धि या होनहार तो कुछ वस्तु नहीं है। जिस काल में कार्य बनता है वह हो काललब्धि और जो कार्य हुवा सो ही होनहार । कर्मके उपशमादि पुद्गलकी शक्ति है उसका कर्ता हर्ता आत्मा नहीं है । पुरुषार्थसे उद्यम करते हैं यह आत्माका कार्य है, इसलिये आत्माको पुरुषार्थसे उद्यम करनेका उपदेश दिया जाता है । जब यह आत्मा, जिस कारणसे कार्यसिद्धि अवश्य हो उस कारणरूप उद्यम करता है तो अन्य कारण मिलते ही मिलते हैं और कार्यकी भो सिद्धि होवे ही होवे । जिस कारणसे कार्यसिद्धि हो अथवा नहीं भी हो, उस कारणरूप उद्यम करे, वहाँ अन्य कारण मिलें तो कार्यसिद्धि हो जाती है, नहीं मिलें तो सिद्धि नहीं होती है । इसलिये जिनमतमें जो मोक्षका उपाय कहा गया है उससे मोक्ष होवे ही होवे । अतः जो जीव पुरुषार्थपूर्वक जिनेश्वर के उपदेश अनुसार मोक्षका उपाय करता है उसके काललब्धि या होनहार भी हुआ और कर्मका उपशमादि भी हुआ है तो यह ऐसा उपाय करता है इसलिये जो पुरुषार्थसे मोक्षका उपाय करता है उसको सब कारण मिलते हैं ऐसा निश्चय करना और उसको अवश्य मोक्षकी प्राप्ति होती है ।
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