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________________ ३८ जसहरचरिउ (१७) स्रग्विणी :-यह चार रगण ( ग ल ग ) युक्त १२ वर्णोका छन्द है । यथा गोमिणी-सामिणी-माणिणी-माणओ। धाविया किंकरा बोल्लिओ राणओ ॥ मज्जमाणा समाणा तए पुज्जिया। देव कीला-विलासुज्जिया खुज्जिया ॥ (३,३,३-४ ) (१८) वसन्तचत्वर :-यह १२ वर्णात्मक छन्द है जिसमें ज र ज र गण आते हैं और वर्ण लघुगुरु क्रमसे प्रयुक्त दिखाई देते हैं । यथा : झरंत-सच्छ-विच्छुलंत-णिज्झरं । भरंत-रुंद-कुंड-कूव-कन्दरं ॥ ललंत-वेल्लि-पल्लवोह-कोमलं। मिलंत-पक्खि-पक्ख-लक्ख-चित्तलं ॥ ( ३,१६,३-४ ) (१९) भुजंगप्रयात :-यह १२ वर्णात्मक छन्द है जिसमें वर्ण य य य य गण ल ग ग क्रमसे आते हैं अतः जो उपर्युक्त सोमराजी ( संखराणी ) का दुगुना है । यथा इमं सव्वमायण्णिउं चण्डमारी। पहू मारिदत्तो वि जीवावहारी ॥ विसण्णाई चित्ते विरत्ताई पावे । विलग्गाई धम्मे पराइण्ण-तावे ॥ ( ४,१७,३-४ ) इस प्रकार इस काव्यमें १३८ कडवकोंमें से केवल १९ में अन्य छन्दोंका प्रयोग हुआ है। शेष ११९ कडवकोंमें अधिकांश पज्झटिका व अन्यमें पादाकुलक व अलिल्लह नामक १६ चरणात्मक छन्दोंका प्रयोग पाया जाता है । घत्ताके तीन प्रकार तथा दुवईका एक प्रकार प्रयोगमें आया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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