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प्रस्तावना
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इसी दुवई छन्दका एक-एक पद्य तीसरी और चौथी सन्धियोंके समस्त कडवकों ( सन्धि ४ के २३ से अन्त तकके कडवकोंको छोड़कर ) के आदिमें पाया जाता है ।
(११ ) घत्ता ( ३१ मात्रिक ) :- प्रत्येक कडवकके अन्तमें जो घत्ता आये हैं वे सन्धि १ और ४ में एक से हैं। इस प्रकार यह घत्ता ३१ मात्राओंके दो चरणोंका है और वह षट्पदी कहा जा सकता है। यथा :तिहुवण-सिरि-कंतहो अइसयवंतही
___ अरहंतहो हयवम्महहो। पणविवि परमेट्टिहि पविमल-दिट्टिहि ।
चरण-जुयल-णयसयमहहो । ( १, १, १-२ ) ( १२ ) धत्ता ( २४ मात्रिक ):-सन्धि दोके घता-पद्य भी षट्पदी हैं क्योंकि उनके आदिको छह-छह मात्राओंपर यति और यमक है, तथा अन्त की बारह मात्राएँ दोनों चरणोंमें परस्पर यमक रखती हैं । इस प्रकार ये पत्ता २४ मात्रिक षट्पदी हैं । यथाः
कामालसु रइ-लालसु पेम्म-परव्वसु मत्तउ । हउँ धरणिहिं वण-करणिहि वण-करिंदु जिमु गुत्तउ ॥
( १३ ) घत्ता ( २८ मात्रिक ) सन्धि तीनके घत्ता-पदोंके चरण १५ + १३ = २८ मात्रिक है जिनके अन्तमें नगण ( ल ल ल ) रहता है। इसे प्राकृत पिंगल में 'उल्लाला' छन्द भी कहा गया है । उदाहरण :-पुणु रायहो भासइ अभयमइ
णिय-भव-भमण-किलेस-कह । उज्जेणिहि सिप्पा णाम णइ
अत्थि सच्छ गंभीर-दह । ( ३, १, १-२)
वणिक छन्द
(१४ ) सोमराजी ( संखणारी ):-यह दो यगण ( ल ग ग ) युक्त छह वर्णोका छन्द है ।
यथा--
अणिदो खगिदो। दिणिदो फणिदो ।
सुरिंदो उविंदो । महारुंद चंदो ॥ ( १,१८,१-२ ) इस प्रकार यह चार यगण वाले भुजंगप्रयात छन्दका आधा है।
(१५) समानिका:-यह र ज ग ल गण युक्त आठ वर्णात्मक छन्द है जिसमें समस्त वर्ण गुरु लघु क्रमसे आते हैं । यह दो कडवकोंमें आया है । ( ३,२,३,१५ ) उदाहरण :-उज्जलम्मि कोमलम्मि । तत्थ सच्छ-विच्छुलम्मि ।
संचरंतु हं तरंतु । मीण-मंडलं गिलंतु ॥ ( ३,२,३-४ ) (१६) ? :-यह भी अष्ट वर्णात्मक छन्द है जिसकी गण-व्यवस्था भ स ल ग क्रम से होती है। उदाहरण :-छेल-मिहुण-सूयरा । रोझ-हरिण-कुंजरा।
वाल-वसह-रासहा । मेस-महिस-रोसहा ॥ (१,१०,१-२)
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