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________________ १० १५ २० २५ ३० १५६ पावणिसुभणि उयरुपपणें कासवगोत्तिं जिणपयभक्ति वयसंजुत्ति वियलिय किं Jain Education International पहसियतुंडिं रंजियबहसह जो आयण्णइ लिहइ लिहावइ जो मणि भावइ विहुणियचणरय जणवयणीर सि कर्णदायरि पडियकवालइ बहुरंकालइ परागारं सहल महु उवयारिङ गुणभत्तिल्ल उ होउ चिराउ तप इि विलसर गोमणि घुम्मदलु संति त्रियंभ जसहरचरिउ ३१ धमुच्छा सुनंदउपय जय जय जिणवर विलु सुकेवलु महु उप्पज्जउ मुद्धाबंभणिसालवण | केसव पुत्ति । धम्मासत्ति । उत्तमसत्तिं । अहम कणा खंडि | कय जसहरकह । चंगड मण्णइ | पढ पढ । वइ । सो रु पावइ । सासयसंपय । दुरियमलीमसि | दुस्सहदुहरि | रकंकालइ | अइदुक्कालइ | सरसाहारिं । वरतंबोलिं । णि पेरिउ । गच्च कामिणि । पसरउ मंगलु | दुक्खु णिसुंभउ | सरण | जय परमप्पय । जय भयमयहर । णाणु समुज्जलु । एत्तिउ दिज्जउ । अ कव्वु करंतिं । जं हीणाहि उ काई भि साहिउ | घत्ता-तं मायै महासइ देवि सर्रो सइ हियसयेलसंदेह दुह । महु खम भडारी तिहुवणसारी पुप्फयंत जिणत्रयण रुई ||३१|| इय जसहर महाराय चरिए महामहल गण्ण करणाहरणे महाकइपुष्फयंतविरइए महाकन्वे चंडमारिदेवयमारिदत्तरायधम्मलाहो णाम चउत्थी संधी परिच्छेओ समत्तो ॥ ४ ॥ ण्णु महल्लउ | बरिसउ पाउसु | धणकणदाइणि । [ ४. ३१. १ ३१. १. ST पविमलु केवलु णाणु सुणिम्मलु । २. ST ण मुणंति । ३ AT माइ । ४. T सरस्सइ । ५. AP सयलसंदोह । ६. S T कह । ७. S जसवइकल्लाणमित्त मारियत्तअभयम इस ग्गगमणो णाम । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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