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४. ३०.१७ ]
हिन्दी अनुवाद
२९. सुदत्त मुनिका सप्तम स्वर्ग गमन । यशोमति, कल्याणमित्र गोवर्धन, मारिदत्त और कुसुमावली भी तपकर स्वर्गगामी हुए ।
उस सिद्धगिरिपर विराजमान होकर सुदत्तमुनि अनित्यभावनाका चिन्तन करने लगे और विचारने लगे कि संसारकी गति नित्य नहीं होतो । उन्होंने भले प्रकार सत्यरूपसे आराधनाओं का अभ्यास किया तथा अवधिज्ञान सहित सातों तत्त्वोंका स्वरूप जान लिया । फिर उन्होंने समाधियुक्त संन्यास किया और इस प्रकार सुदत्त मुनि सप्तम स्वर्ग में जा पहुँचे । वह यशोमति, कल्याणमित्र, व पवित्र यतिवर मारिदत्त, व बहुगुणशाली वणिक् कुलरूपी कमलको प्रफुल्लित करनेवाला सूर्य, गोवर्धन तथा वह कुसुमावली, जिसने मन-वचन-कायरूप तीनों गुप्तियों का पालन किया था, आर्थिक गुणोंसे युक्त थी और धर्मको विधिको जान लिया था, ये सभी भलीभांति तपस्या करके पापविनाशक संन्यासभावसे यथासमय जिनधर्मके प्रभावसे स्वर्गके अग्रभाग में जा पहुँचे ।
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अब मैं उस भव्य पुरुषका नाम स्पष्टतः प्रकट करता हूँ, जिसके उपरोधसे मैंने इन भवान्तरों का वर्णन किया है ||२९||
३०. कृष्णके पुत्र गन्धर्व द्वारा प्रक्षिप्त वर्णनों का उल्लेख तथा आत्मपरिचय
पूर्वं काल में पट्टन में छंगेसाहु नामक साहु ( वणिक् ) थे । उनका पुत्र हुआ गुणवान खेला साहु और खेलाका पुत्र हुआ बोसल साहु, जो एक वीर पुरुष था और अपनी साध्वी पत्नीका सुयोग्य पति था । वह उदार और नाना गुणोंसे सम्पन्न था । उसने एक दिन अपने चित्त में कुछ भलाई की बात सोची। उसने कहा- हे कृष्ण के पुत्र पण्डित ठक्कुर, मेरे उपकारी तथा परमप्रिय मित्र, पुष्पदन्त कविने यशोधर चरितकी भले प्रकार शब्द और लक्षणों के वैचित्र्य सहित रचना की है । अब आप उसमें कौल आचार्यं भैरवानन्दका राजकुल में प्रवेश और आश्चर्य जनक यशोधरका विवाह तथा सभी पात्रोंके भव-भ्रमण और जन्मान्तरोंके विवरण प्रविष्ट कर दीजिए । आप विना विलम्बके मेरी इस वांछाकी पूर्ति कीजिए । तब मैंने बीसल साहुको इच्छाके अनुसार कौलाचार्यका राजाके विवाहका तथा पात्रोंके भवभ्रमणका भव्य वृत्तान्त रच डाला । फिर मैंने उसका व्याख्यान करते हुए जब उनके सम्मुख सुनाया तब बीसल साहु बहुत सन्तुष्ट हुए । योगिनीपुर ( दिल्ली में ) निवास करते हुए मैंने यह रचना की और उक्त साहु के घर स्वस्थ भावसे स्थित जनोंके सम्मुख इसकी घोषणा की। राजा विक्रम संवत्सर के तेरह सौ पैंसठ वर्ष व्यतीत होनेपर वैशाख मासके प्रथम पक्ष कृष्णपक्ष ? ) की तृतीया मिश्रित द्वितीया दिन रविवारको यह काव्य-रचना सम्पूर्ण की। प्राचीन कालमें जिसे कविने वस्तु बन्व अर्थात् वस्तु छन्द में रचा था उसी को मैंने यहाँ पद्धड़िया बन्धमें रच दिया है । उक्त पात्रों के भवान्तरोंका यह वर्णन कृष्ण के पुत्र गन्धर्वने एकाग्र चित्त होकर किया है । इस प्रक्षेपको मेरो मनमानी रचना होने का दोष मुझे न दिया जाय, क्योंकि पूर्वकालमें जो कवि वत्सराजने वर्णन किया था, उसी सूत्रको पाकर मैंने यह रचना की ।
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जो जीवोंपर दयालु हैं, जिनके हाथमें कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं हैं, ब्रह्मचारी हैं, वे जरा और मरणके विनाशक एवं मानके विध्वंसक, निरंजन, धर्मस्वरूप जिनेन्द्र पुष्पदन्त मेरे शरणदाता हैं ||३०||
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