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________________ १० १५ २० २५ ३० ३५ १५० जसहरचरिउ अणु भगव दिक्ख पडिगाहिय धरणि भमंतु भमंतु परायउ तहिँ ठि तव सचित्तइँ वंछइ वंछिउ लद्ध मरेवि गुरुक्क उ पुल्लिंगाउ फिरिवितियलिंगड जणणी तुज्झ सरूव सुलक्खण समगुणु परिपालिवि सुहरउ दंडपणा जासु पइँ विहियउ करुणारसें पूरिवि णियविग्गहु उज्जेणिहि यरिहि जसबंधुरु छदंसणभत्तउ मढ देउल दमणोहरु सरसाहारहिं पीणिवि तावस जिणचेईहर धयमंडियसिर कारावेपणु दाणु यच्छिवि वकीलाबहुभोज करेष्पिणु सुभावणजुत्तीइ मरेष्पिणु मयगय उरु कलिंगा हिउ णिउ णाम सुदत्तु रायसिरिमंडिउ इक्कइया कुसुमालु हेपिणु महु जाणाविउ किं णिव किज्जइ हि दियवर जे दंडु परंजहिँ आहो कण्णणास करछेयणु हु दोसर पहु मारिज्जइ पाउ तुझ जइ इहु मारिज्जइ एम सुविणु चित्तु विरत जिणसिक्खा सीयरिवि भमंतर Jain Education International सरिसरवरतित्थइँ अवगाहिय । णिय पुरवरि देविहि मढि आयउ । होउ मज् इच्छेवयसंपइ । चंडमारि देवय हुइ थक्कउ । बप्पु तुम्ह हुड असुहव संगउ । चित्तसेण णामेण वियक्खण । पाण चएवि जाउ सो भइरउ । अच्छइ णेहिं जो महिमहियउ | कप्पणिवासि देउ होसइ इहु । उपसिद्ध उण्णयकंधरु | दीहि पोखरि पविउलैजल । रणजडि दिपंत सेहरु । भयवजईसर बहुणिट्ठावस | उइवंत सवित्र अइथिर । मिच्छभाउ भावेण समिच्छिवि । दीहु का पिंड भुंजे पिणु । इदेउ नियँहियइ धरेष्पिणु । भयदत्तो रायहो हउँ हुउ सुउ । करमि रज्जु रिउबलहिँ अखंडिउ । तलवहिँ दिदु दिउ बंधेपणु । कारागारं तरसा णिज्जइ । वलेवि महुपुर पयं पहिँ । चलणछेउ किज्जइ सिरछेयणु । कस्स पाउ म वुत्तु ण किज्जइ । छडिज्जइ वियहु तुव जुज्जइ । जुण्णतणुव्व रज्जु परिचत्तउ । पंचवार तुव पुरि संपत्तछ । घत्ता - एवहि हउँ एत्थु चउविहसंघसमावरिउ ॥ तर तिव्वु तवंतु तणकंचणु सम मित्त रिउ ||२७|| [ ४.२७. १० २८ उज्जेणिहिं रायजसोहमंति णियपइ ठवेवि सुउ नागदत्तु गुणसिंधु सजणवि हियसंति । घरभारवहणु पिउपायभत्तु । ५. A जलपविउल । ६. A णिवपउ । ७. A नियमणि झाएप्पिणु । ८. Aणा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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