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________________ १३४ चत्त जसहरचरिउ [४. १५. १२ता अम्हहिं लइयउ खुल्लयत्तु चत्तउ परिहणु आहरणु वित्तु । पंगुत्तउ पंडुरचीरखंडु मणु मुंडिवि पुणु मुंडियउ मुंडु । कोवीणु कमंडलु भिक्खपत्तु लइयउ वउ भवजलजाणवत्तु । घत्ता-जायउ संजइयउ णिजियमइयउ राणियाउ जसवइपियउ । कयसुरणरसेविं गुरुणा देविं पुरकंतियह समप्पियउ ।।१५।। १५ दुवई-जिणतवचरणकरणपरिणयमणविणियमारमारिहिं । तणुघुलियाहिरायजीहादलविलिहियधम्मवारिहिं ॥१॥ परिदुस्सहणिट्ठाणिट्ठिएहि कडयडियसंधिबंधट्टिएहिं । उरपुट्ठिवंसहड्डुब्भडेहि सुविसमपासुलियापायडेहिं । कयघोरवीरतवतत्तएहि जगजीवभयंकररूवएहिं। हेमंतणिसाहयणेहएहिं हिमपडलपैडावियदेहएहि । विसहियपाउसजलझल्लिरेहि गिंभम्मि सहियरवियरझलेहि। अट्ठविहफाससमभाविरेहिं सग्गापवग्गपहदाविरेहि। हयसल्ल हिँ णिज्जियवम्महे हिं तासियविद्धंसियमयगहेहिं । माणावमाणसमभावएहिं झाणासिएहिं तणुतावएहि । धणुदंडमडयसिज्जासिएहिँ कंदरमसाणगुहवासिएहिं । गयसुंडयगोदुहआसणेहिं दिणपक्खमासकयपारणेहिं । दीहररोमावलिभासुरेहि सुतिमुंडधरेहिं जडाधरेहिं । जल्लमलविलित्तसरीरएहिं मेइणिमंदरगिरिधीरएहिँ। रुहट्टझाणणिग्गयमई हिं सहुँ महि भमंतु णिम्मलजईहिं। इत्थाइउ जइवइ अप्पमत्तु अम्हारउ गुरु णामि सुदत्तु । अवहत्थियपत्थिवसंपयाइँ तिं सत्थि अम्हि समागया। वंदेप्पिणु गुरुपयपंकयाइँ भिक्खाणिमित्तु छुडु णिगयाइँ। घत्ता-ता पंथि चरंतई जिणु सुमरंतई किंकरेहिं संदाणियई ॥ बिणि वि सुहचरियई करयलि धरियई एउ देविघरु आणियई ॥१६॥ १५. १. A पुरु कंतियहे। १६. १. ST उवरट्ठि; A उरपिट्ठि। २. ST हेमंतणिसासु अणेहएहिं। ३. ST पछाइय। ४. ST पाउसजलझल झलेहिं ; A पाउसझलशलेहिं । ५. ST गहिय । ६. A गोसुंडय; A गयमुंड । ७. ST णिम्ममजईहिं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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