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________________ १५ १० १५ १० ५३२ जसहरचरिउ [ ४. १३. १५ घत्ता - हड्डावलिविहियउ चम्मि पिहियउ पूयगंधभीसावणओ । माणुस कलेवरु चंडालहु घरु जिह तिह णिरु चिलिसाबणओ ||१३|| इयत्ता विरंगु मणि वसइ कामु मज्जायमुक्कु दप्पुभडु माणु अतुट्ठि लोहु परवचणयरु मायाकसाउ कुलबललच्छी मयफुट्टणेत्त ण णिबद्ध सलज्जभाउ दुवई - वोक्करत्तपित्तमत्थितावलि सुक्कसंग मं ॥ 'रईणीर खीर संमद्दसमुब्भवकद्दमोवमं ||१|| कामि दुर्द्दति अंतरंगु । कोहुवि परबंधहणणदुक्कु । महरा इव मोहणसी मोहु । सोउ वि कहाहारवणिणाउ । वि पेक्खइ विणु मज्जेण मत्तु । हु विणत्थपत्थरणिहाउ । तहइ मग्गइ पाणिउ अपेउ । छुह पइसारइ चंडालगेहु | जीहा व समीहs मिट्ठ भक्खु ! फाविणो करइ तति । म पुणु वणमक्कडु जेम चवलु । हिंसाकम्मो उवगरणु पाणि । कइ करइ कइत्तणु रायमुलु । सुहत्तणु जाणह दुरियरासि । पुणु हिंडइ पियविरहिं सुसिउ || वुत्तु करालो डिउ कालहो मरणव्वसणसमूससिउ ||१४|| दाइ सहियहेउ डिहिवि लेइ णीसेसु देहु रमणीरूवेसु रमंति चक्खु घाणु वि सुगंधहो जाइ झत्ति हु धाव गेहो कण्णजुयलु अणुदिणु मुद्दिपइसइ अलियवाणि जुलुवि पाव पहाणुकूलु पंडित कुतक्कपलावभासि घत्ता - अण्णाणु सिसुत्तणु णवजोव्वणु Jain Education International १४ मिच्छत्तकसाया संजमेण सम्मत्तिं जीवदयागमेण किज्जइ संवरु मुणिपुंगवे हिं जिर पुणु बारह तिवेण अइखमवण अइदूस हेण अइसच्चरण सुसउच्च एण संभवइ धम्मु बंभव्वएण मग्गज्जइ हयजर मरणवाहि माहि हुँ मुणिदिक्ख ताम १५ दुवई – कंचुइ कामभोय मणिभूसणणिवसण मंयविहूइया || रोय कयं भिच्च मउलियमुह मुच्छा मरण दूइया ॥ १ ॥ आसवइ कम्मु करणुब्भवेण । इंदियर इस गविणिग्गमेण । दढवयभावणविरइयसमेहिँ । जाएं णिव्वेएं णवणवेण । अइमद्दवेण अइअज्जवेण । परिचत्तपरिग्गहसं गेहेण । अज्जेव्व भावें भव्वएण । जिणगुणसंपत्ति समाहि वोहि । अंगाइँ समत्थइँ होंति जाम । १४. १. A विरइय । २. A वंचण । ३. ST जड णिद्द । ४. A यत्ति । १५. १. A मइ । २. ST संचरण । ३. ST लइ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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