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________________ १८ जसहरचरिउ 'परवलदुमदलण' (१,५,२)। अर्थकी दृष्टिसे समास व पदच्छेदोंमें संशोधन । जैसे 'सिव सोक्खु' के स्थानपर 'सिवसोक्खु' ( १,१,६ ), 'सयंभुअहिं' के स्थानपर 'सयं भुअहिं' (१,३,१७ ), 'हउं तुस मित्तु हं' के स्थानपर 'हउँ तूसमि तुम्हँ' (१,७,११ ), 'रुंडमाल'के स्थानपर 'मुंडमाल' (१,९,३ ), 'दिण्णखण्ण' के स्थानपर 'दिण्ण खण्ण' (१,६,४ ) तथा 'मह णह' के स्थान पर 'म हणह' (३, ४, ७)। २. छन्दकी दृष्टिसे मात्राओंके ह्रस्वत्व-दीर्घत्वका परिवर्तन तथा वर्णका लोप या समावेश । जैसे 'पुरेहु' के स्थानपर 'पूरेहु' (१,८,४ ), 'जत्थचूय' के स्थानपर 'जत्थयचूय' (१,१२,१ ) तथा 'पवसिएहि' के स्थानपर 'पवसिहि' (१,२१,८)। ३. ह्रस्व 'ए' को उसके उलटे रूप (,) में तथा उसकी और 'ओ' की मात्राओंको भी उलटाकर अंकित करनेकी प्रणालीका उपयोग । ४. सम्पूर्ण हिन्दी अनुवादको यथाशक्ति शब्दशः मूलानुगामी रखते हुए विषयको यथासम्भव सुस्पष्ट और भाषाको धारावाही बनानेका प्रयत्न । ५. शब्द-कोषमें कुछ छूटे हुए विशेष शब्दोंका समावेश तथा उनके एवं पूर्ववर्ती विशेष शब्दोंका स्पष्टार्थ तथा उनके साथ सन्धि, कडवक और पंक्तिका उल्लेख । नये जोड़े शब्द जैसे अहोयर, आवड, ओलवोल, कयार, कुसमाल, कुरुल, खड, घा, घुल, घे, चत्थरि, णिरिक्क आदि। ऐसे नये शब्दोंकी संख्या लगभग ७५ है। आशा है कि इन संशोधनों सहित प्रस्तुत संस्करण विद्वानों, शोधकर्ताओं, छात्रों तथा अन्य पाठकोंको विशेष उपयोगी सिद्ध होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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