SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० जसहरचरिउ [४. २. ८क वि भणइ हुवउ पियतिलयछेउ हो हो कि किजइ पत्तछेउ । वहु का वि भणइ किं लिहहि चित्तु पहु वट्टइ कामविरत्तचित्तु । क वि पभणइ किं मुहमंडणेण राणउ रंजिउ तवमंडणेण । वहु का वि पमेल्लइ पडहु पवरु विहि वार्यई लग्गउ किं पि अवरु । क वि कुरुल करंति करंति थक्क लइ केसुप्पाडणविहि पढुक्क । पिय का वि लिहंति कवोलवत्तु हो दइव काइँ विवरीउ पत्तु । उट्ठिय क वि मुत्तिय गुणि ण दिति मुणिगुणि णिञ्चलु णियमणु ठवंति । कवि पभणइ म करहि तिक्ख णक्ख वरइत्तु लएसइ परमदिक्ख । कवि णिसुणिवि पियवत्ताई खीण देहइ कंचुलिय ण थाइ लीण। इय णाणाविह जंपतियाउ पियविरहभएं कंपतियाउ । पासेयबिंदुथिप्पंतियाउ कंचीकलाव गुप्पंतियाउ। गयणंजणंसुमलमइलियाउ मणिरसणाकिकिणिमुह लियाउ । णेउरझंकारमणोहराउ उण्णयघणपीणपयोहराउ। संयल वि अंतेउरराणियाउ जहिं राउ तहिं जि संपत्तियाउ । घत्ता-णहपहजियसुमणिहिँ चलहारमणिहिँ पत्थिउ रमणिहिँ पत्थियउ । बिणडिउ तवचरणिं सिरिसुहहरणिं तुहुँ दइवेण गलत्थियउ ॥२॥ दुवई-अम्हइँ अच्छराउ तुहुँ सुरवइ संउहयलं विमाणयं । पियसंजोग्गुःसग्गु किं सग्गसिरे कुडिलं विसाणयं ॥६॥ रइकरणालिंगणधुत्तियाउ पणेयंगणाउ कुलउत्तियाउ । इय पलवंतियउ ण इच्छियाउ सयलउ रपएं णिब्भच्छियाउ । ढक्कारवचल्लियगयवारेहिँ हि लिहि लिसरेहिं सिययवरेहिँ । णग्गुग्गखग्गकरकिंकरेहि मणचडुलतुरयणियरहवरेहिं । परिवाइयाई सहयरणरेहि विजिजंतई चलचामरेहि । सिग्गिरिणंदणवणसदलाई छत्तावलिछाइयणहयलाई। मरुंचलियघुलियणाणाधयाइँ सिवियाजाणिं बिण्णि वि गया। घत्ता-परिसेसियपरियरु अधेउ अचामरु चरियरयणउडिढयसयरु ।। खोणियलि णिविट्ठउ दोहिँ मि दिहउ परवइ णं सामण्णु णरु ॥३॥ दुवई-ता मुणिवयणकमलणिग्गंतझुणीकहियं कहतरं ।। अम्हइँ तंमि बिहिँ मि तं चिय पुणु संभरियं भवंतरं ॥१॥ भउ सुमरिवि बिणि वि मुच्छियाइँ लंजियहिं करेण पडिच्छियाइँ । २. ST पभणइ हुउ । ३. ST महं मंडणेण । ४. A विहिवायणलग्गउ । ५. ST हा दइयउ किं पि विवरीउ पत्तु। ६, ST झीण। ७. ST णयणंजण मुहुँ मइलितियाउ। ८. S and T omit this line and A and P give it in second hand I ३. १. T सउहलयं । २. T पणियंगणाउ । ३. ST चलियसुगयवरेहिं । ४. ST अम्हइं विलुलियणा णाधयाइं। ५. ST अणउधअचामरु ; A सधउ सचामरु । ४. १. ST पुणो भरियं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy