________________
*अश्रान्तदानपरितोषितवन्दिवृन्दो दारिद्रौद्रकरिकुम्भविभेददक्षः । श्रीपुष्पदन्तकविकाव्यरसामितृप्तः श्रीमान्सदा जगति नन्दतु नन्ननामा ॥१॥
णिसुणिवि दुहभरियई महु भवचरियई जसवइणि हियवउ चलिउ । सोयरसु पधाइउ अंगि ण माइउ णयणंसुय धारहिं गलिउ ।। ध्रुवकम् ॥ दुवई-मुणिकमकमलजुयले लोलंतु पघोसइ एमे पत्थिओ ।
हा हा मज्झु जणणु जें मारिउ सो भुवणयलि णिक्किओ ॥११॥ अज्जु जि संघारमि पाववेरि लइ ण करमि केण वि समउ खेरि। पिट्ठमएं कुक्कुडएं हएण
मणि मण्णिएण दुरिएं कएण | गुरुयणु पत्तउ एवडु दुक्खु डज्झउ माणुसु जं चम्मचक्खु । बप्पु वि णो लक्खिउ जम्मि जम्मि मई माराविउ णिद्धम्मि धम्मि । जहिं रिसि गुरु जिणवरु णस्थि देउ तहि कुलि कहिं जीवह दयविवेउ । वाहिजइ जहिं वणयरहँ सत्थु तहिँ बंधु वि हम्मइ परभवत्थु । जीवउलइँ मई णिहयाइँ जाई को लक्खिवि सका ताइँ ताई। जइचरणकमलसंणिहियचित्त भो भो वणिवर कल्लाणमित्त । घत्ता-सीहासणछत्तई वरवाइत्त, विविहई चिंधई चामरइं।
रहवर मायंगई पर्वरतुरंगई भडसेण्णई पंज लियरई ॥१॥
दुवई-लइ पत्थिवसुहाई अणुहुँजउ अभयरुई कुमारओ।
महु दिक्खहे पसाउ पडिवजउ भणु भणु तुहुँ भडारओ ।।१॥ कयलीकंदलसोमालगत्त
अभयमइ कुमरि सिसुहरिणणेत्त । दिजउ कुमरहो रिउमद्दणासु अहिछत्ताहिवणिवणंदणासु । तहिँ अवसरि पुरवरि वत्त पत्त लइ चारु सिद्ध पारद्धिजत्त । संजायउ रायहो'धम्मलाहु तवचरणहो उवरि णिबद्ध गाहु । ता तहि चवंति रायाणियाउ
घणरम्मपेम्मसवियाणियाउ ।
*This verse is omitted in S and TI १. १. ST णिवहियवउं; A णिवहु हियउं । २. ST एव । ३. A चम्मरुक्खु । ४. ST एत्थु ताई
५. S सिंहासण । ६. S चवल । २. १. ST पत्त वत्त ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org