SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६ जसहरचरिउ [ ३.४०.१४० दुवई-मुउ सिप्पाणई हिं उप्पण्णउ खुजयणारिमारओ॥ . पई मारियउ जणणजणणी चिरु दुद्धरु सुसुमारओ ॥१॥ वेएं भासिउ भट्टमरट्टहँ रोहियमच्छु दिण्णु जो भट्टहँ । तेरउ बप्पु पई जि संताविउ ... सो कयपहरई विहुरई पाविउ । तहिं जणणीयहि अइयहि अईयउ हूवउ पावपडलसंछइयउ । हिंदें सिंगग्गें भिण्णउ मायारूढ उ तहिं जि विवण्णउ । जीविउ बीयबिंदुसंमाइउ । अप्पउ अप्पएण मइँ जाइउ । थिउ पुणु गम्भंतरि णियमायहिं भंगुरअंगो णामियकायहिं । मयमारणि पारद्धि ण सिद्धी सा छालो पत्थिव पई विद्धी। पियमायरिहि पोट्ट दोहाविउ छावउ जीवमाणु अवलोइउ । अप्पिउ धणियहि तेण जि रक्खिउ घरु आणिउ ता आमिसु भक्खिउ । पाउ लुणेवि दिण्णु णियमायहि पुत्वजम्मि तहु तणियहि जायहि । अय हय मय णिव तुह बाणग्गि गय पुणरवि सयत्त-कयमग्गि। हूई सिंधुमहिसु खयरूवउ जाणसि किं ण तुरयजमदूअउ । उअरहो हेट्ठि अग्गि जालाविउ जो पई विरसमाणु पउलाविउ । सो सेरिहु अज्जी य तुहारी अवसु ण चुक्कइ वाय महारी। पत्ता-सो छेलउ महिसु वि संभरहि अवरपक्खि जहिं जइयहुँ । पइँ खंडिवि खंडिवि बंभणहँ खाउँ दिण्णु तहिं तइयहुँ ॥४०॥ दुवई-बे विमुयाइँ ताई पुणु कुक्कडपक्खिभवे पवण्णइं॥ तित्थु सुणेवि सद्दु गंदणवणि पई बाणेण भिण्णई ।।१।। तहिं मरेवि णिरुवमलायण्णई ... कुसुमावलिहिं गम्भि उप्पण्ण। एम बप्प विसहियसंसार अभयमईअभयरुइकुमार। एवहिं पुण्णबंधपारंभई घरि अच्छंति तुज्झ पियडिंभ। अमयमइ त्ति देवि तुह मायरि 'मंसासिणि णं भीमणिसायरि । गुणगणवंत महारिसि णिदिवि कुगुरुकुदेवह चरणई वंदिवि । मीण जियंत जियंत तलेप्पिणु भोयणवेल. विप्पहँ देप्पिणु । सइँ भक्खेप्पिणु मज्जु पिएप्पिणु जारहो कारणि पइ मारेप्पिणु । णि ट्ठियढिकुटुंण कुहेप्पिणु अइरउद्दझाणेण मरेप्पिणु । पंचमणरयहो गय सा पाविणि जसहररायहो केरी भामिणि । घत्ता-दुक्कम्मि णिवडइ णरयबिले सुहिंउ कहिउ अवगण्णइ ।। सिरिपुप्फयंतजिणवरवयणु मूढु लोउ णायण्णइ ॥४१।। इय जसहरमहारायचरिए महामहल्लणण्णकपणाहरणे महाकइपुप्फयंतविरइए महाकन्वे जसहरमणुयजम्मलाहो णाम तइभी संधी परिच्छेभो समत्तो ॥३॥ ४०. १. ST जूहेसें । ४१. १. AST मयाई । २. ST बद्धपुण्णपारंभई । ३. ST मासासिणि । ४. ST भाविणि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy