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११४ जसहरचरिउ
[ ३. ३८. ३जीवधणासपास छंडेविणे
जुण्णउ तणु व सरज्जु मुएविणु । थिउ गिरिगहण महरिसि होइवि भो भो जसवइ रोसु पसाइवि । पणवहि चरणजुयलु एयहो तुहुँ कर मउलेवि अवलोयहि रिसिमुहुँ । इय कल्लाणमित्तवयणुल्लउ
लग्गउ कण्णि णरिंदहो भल्लउ । वंदिउ गुरु गुरुआर भत्तिए तेण वि सव्वजीवकयमित्तिए । धम्मलाहु होउ त्ति पघोसिउ वच्छल्लं महुरक्खरु भासिउ । चिंतइ णियहियवइ णिवसुंदरु अचलत्तेण धीरु गिरि मंदरु । गंभीरत्तणेण रयणायरु
तेएं सई पुणु चंदु दिवायरु । णं पुजेप्पिणु ठवियउ संजमु मुणिवेसिं णं संठिउ उवसमु । णं माहप्पसारु तवसत्तिहि
आवासउ णं जिणवरभत्तिहि । णं दयवेल्लिहि कीलागिरिवरु खंतिपर्वरपोमिणियहि सरवरु । एह उ साहु साहु सुइ संतउ मइँ पाविं मारणु आढत्तउ । घत्ता-पच्छित्त करमि दुन्विलसियहो सीसु लुणेप्पिणु अप्पणउ ।
णिवचिंतिउ मुणिवि मुणीसरिण जंपिउ सवणसुहावणउ ॥३८॥
३९ दुवई-हो हो हो णरिंद किं चिंतिउ अलिउलणीलकेसयं ।
जिंदणगरुहणाइ तमु णासइ मा खंडहि ससीसयं ॥१॥ ता पहु चवइ गुज्झु किह लक्खिउ मणु वि महारउ मुगिणा अक्खिउ । हियउ मुणेवउ किं किर साहसु भणइ सेट्ठि परमेहि समंजसु । लोयालोयउ जं जि समिच्छहि. तं जि कहइ जइवरु परिपुच्छहि । पुणरवि जगरवि-रिसिहि णवेप्पिणु भणइ राउ महु ताउ मरेप्पिणु । जसहरु सहुँ जणणि कहिं जायउ कहिँ जसोहु जसपसरियछायउ । कहइ सूरि सियपलिउ णियच्छिवि तुह जणणहो कुललच्छि पयेच्छिवि । दुद्धरु तउ चरेवि भयमयवहु गउ सुरहरहो जसोहु पियामहु । परियणसँयणाणंदजणेरइ
पट्टबंधि णरणाह तुहारइ। कुलदेवयहिं पुरउ परिवायवि पिट्टि विरइउ कुक्कुडु घाईवि । ऐत्थु जि णिहयई मायापुत्तई गरलवसेण पत्त पंचत्त। *णरवइ संजायइँ सिहिसाणइ एम जीउ पावहँ फलु माणइ । सुणहिं मारिउ जो मोरुल्ल उ सो परियाणसु तुहुँ जणणुल्ल उ । पइँ फलहें हउ फोडियमत्थउ सारमेउ जो महिपल्हत्थउ । सो अज्जियहि जीउ जाणेज्जसु एवहिं जीवहँ जीविउ दिजसु । घत्ता-पुणु विसहरारि तुह पिउ हुवउ तहो मायरि भीयाँ उरउ ।
सो खद्धउ तेण भयंकरिण सई पुणु मरिवि तरच्छहउ ॥३९।।
२. ST छिदेप्पिणु । ३. S दयदेविहि । ४. ST परम । ५. ST सत्तउ । ३९. १. ST जइ तुहं । २. A समप्पिवि । ३. A तवेवि । ४. T णयणाणंद। ५. S मारिवि ।
६. ST एत्थुज्जेणिहिं मायापुत्तई । ७. ST भवसायरि जायई। ८. ST भीसणु ।
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