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३. ३८.२]
हिन्दी अनुवाद अ-स्नान व्रतको क्यों दूषित ठहराया और मुनीन्द्रके प्रति निन्दात्मक वचन कहे ? यज्ञ करनेवाले लोगोंके लिए स्नान न करनेका आदेश दिया गया है (?)। किन्तु फिर महातपस्वी विष्णुको बात हो क्या है ? अयसके मल ( लोहेकी जंग ) से मलिन हुआ वस्त्र जलसे शुद्ध किया जा सकता है, किन्तु क्या पापोंसे दूषित शरीर जलस्नानसे शुद्ध हो सकता है ? फिर मनुष्य तो वसा ( चर्बी ) से चुपड़ा हुआ है तथा लोभ, मोह, माया और मदकी मलिनतासे जकड़ा हुआ है। पुनः-पुनः धोये जानेपर भी वह अशुद्ध ही रहता है, क्योंकि वह नगर भर का मल बहानेवाली नालीके समान है। पुष्पमाला, चन्दन व धोया हुआ वस्त्र ये तभी तक शुद्ध हैं जब तक वे मनुष्यके शरीरसे दूर रहते हैं। हे राजन्, दुर्धर-तपधारी महर्षियोंका समस्त देह पवित्र ही होता है। उनका लालारस । (लार ) तथा उनके शरीरमें लगा हुआ मल ( पसीना ) भी रोगसे पीड़ित लोगोंके रोगका हरण करता है ॥३६॥
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३७. मुनिको ऋद्धियोंका वर्णन जिनके चरणोंकी धूलिके लेपसे भी पापरूपी कीचड़ दूर हो जाता है, ऐसे ऋषियोंको, हे राजन्, प्रणाम करना चाहिए। अतः आपने जो क्रोधभाव धारण किया है, उसे छोड़िए। इन्हें आमोषधि, महान् खेलोषधि, जल्लोषधि, विप्रोषधि, महानस ऋद्धि तथा सर्वोषधि ये ऋद्धियां प्राप्त हैं। इनके अंगोंको सपं नहीं काटते । इनपर सिंह व हाथी, भिल्ल और पुलिन्द तथा तीन नखों वाले जंगली पशु आक्रमण नहीं करते। ये यदि रुष्ट हो जायें, तो ये इन्द्र, मेरु पर्वत तथा त्रैलोकको भी नीचे गिरा सकते हैं। इनकी तेजोऋद्धिसे सृष्टिमात्रको प्रज्वलित कर सकनेवाली दष्टिके सम्मुख कोन ठहर सकता है ? किन्तु इतना सामर्थ्य रखते हुए भी वे तनिक भी खलोंपर रुष्ट नहीं होते और न प्रणाम करनेवाले सज्जनोंपर प्रसन्नता दिखलाते हैं। ये मुनीन्द्र अत्यन्त मध्यस्थ भाव रखते हैं। ये महातत्त्वज्ञानी हैं, महायशस्वी हैं, तथा जीवन और मरणमें सामंजस्यभाव रखते हैं। इनके ऊपर जो शत्रुनर शस्त्र चलाते हैं, वे इनके लिए कमलपत्र हो जाते हैं। अतः इस प्रकार इतनी कोतिके निधानको मारनेके लिए आपका हाथ कृपाणकी ओर कैसे बढ़ता है ? इन्होंने सिंह और शार्दूलोंपर भी अनुग्रह करके उनको भी जैनधर्मकी अहिंसावृत्तिका ग्रहण करा दिया है अथवा मैं तो श्रावक हूँ और वचनमात्रसे इनकी प्रशंसा कर रहा हूँ, किन्तु आप स्वयं ही मुनिवरके प्रभावको देखिए । आपके द्वारा जो दूसरोंको मारनेवाले लपलपाते हुए पांच सौ कुत्तोंको छोड़ा गया था, वे मुनिराजके चरणमूलमें जाकर लोट रहे हैं और अपनी पूंछोंको हिला रहे हैं। इन्हें देखिए, देखिए । मोहसे मूढ़ मत होइए । साधुकी वन्दना कीजिए । क्रोधसे दग्ध होना छोडिए । ये गुणोंके निधान सुदत्त नामके मुनि हैं। पहले ये कलिंग देशके राजा थे। एक चोरके पकड़े जाने, बाँधे जाने और वध किये जानेसे उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया और वे यति हो गये ।।३७॥
३८. सुदत्त मुनिका परिचय तथा राजाका हृदय-परिवर्तन अपने न्यायाधिकरणमें नियुक्त द्विजवरोंकी समितिने एक चोरका न्याय किया, और उनके द्वारा चोरके हाथ-पांव और शिर काटनेका दण्डविधान किया गया, जिससे इन कलिंगके राजाको
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