SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ जसहरचरिउ [३. ३६. १३अण्णु वि पई अण्हाणु किं दूसिउ जिंदावयणु मुणिंदहो भासिउ । जणि अण्हाणु पउत्तु कुणंतहँ किं पुणु रिसिहिं महातववंतह । 'अयमलु सलिलि सुज्ज्ञइ कप्पडु देहुँ कि सुज्झइ दुक्कियलंपडु । माणुसु पुणु थिप्पइ वसचोप्पडु लोहमोहमायामयसुक्कडु । धुप्पइ धुप्पइ पुणु वि अचोक्खउ णयरोघसरपसरसारिक्खउ । फुल्लमालचंदणधोयंबरु तोम सुद्ध जा दूरि कलेवरु । ___ घत्ता-सब्वंगु पवित्तु महारिसिहि पत्थिव दुद्धरतवधरहँ ॥ लालारसु लग्गउ तणुमलु वि हरइ रोउ रोयाउरहँ ॥३६॥ दुवई-जाणं पायधूलिलेवेण वि णासइ पावपंकओ ।। ताणमिसीणमीस' पणविजसु छडुहि मच्छरो कओ ॥१॥ आमोसहि पविउलखेलोसहि जल्लोसहि विप्पोसहि णंसहि । अहयमहाणसद्धि सम्वोसहि एयहोणउ डसंति अंगई अहि । एयहो हरि करि पुणु वि ण लग्गहिं भिल्लपुलिंदई पहलवलग्गहि । जइ रूसइ तो पाडइ सक्कु वि मेरुमहीहरु सउँ तिल्लोक्कु वि । तेयरिद्धिपज्जालियसिट्ठिहि को किर थक्कइ एयहो दिहिहि । पर किं बलि वि खलाह ण रूसइ पणवंतहँ सजणहँ ण तूसइ। अइमझत्थु महत्थु महाजसु जीवियमरणि मुणिंदु समंजसु । एयहो अरिणरसत्थइँ चित्तइँ लैइ ताइँ जि हवंति सयवत्त । इय एवडुहो कित्तिणिहाणहो करु पसरिजइ केम किवाणहो । सीहहँ सद्दलहँ वि अणुग्गहु जेण कियउ जिणधम्मपरिग्गहु । अहवा हउँ किर बोल्लमि सावउ पेक्खु पेक्खु मुंणिवरहँ पहावउ । परमारणसीलइँ लल्लक सुणह ई पंचसय ई पई मुक्कई । मुणिवरपायमूलि लोलंतई चललंगूलदंडचीलंतई। पेक्खु पेक्खु मा मुज्झहि मोहिं वंदहि साहु म डज्झहि कोहिं । घत्ता-णामेण सुदत्तु गुणोह णिहि होतउ राउ कलिंगवइ । कुसुमालधरहु बंधहुँ वहहु णिविण्णउ इहु हुवउ जइ ॥३७|| ३८ दुवई-णियणायाहियारि थिय दियवरणियरेण विणिउत्तओ। __तक्करपाणिपायसिरखंडणदंडणविहि विरत्तओ ॥१।। ६. AP अयमयसलिलि। ७. ST omit this line. ८. ST omit this line. ९. ST ता सुंधुय । ३७. १. P जाणउं; A जिणम । २. सीसु । ३. AST पविमल । ४. ST omit this line. ५. ST ___ चंदक्कु वि सक्कु वि तेलुक्कु बि । ६. ST लग्गई ताई। ७. ST पच्चक्खु । ८. ST लोलंतई। ९. ST बंधणवहेण । ३८. १. A पउत्तउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy